पृष्ठ:हिंदी शब्दसागर भाग ३.pdf/२३१

यह पृष्ठ अभी शोधित नहीं है।

गुरखाई ... १३०८ गरिद . .::- रसाही--संशो० [देश॰] वह रेहन जिसमें रेहन रखनेवाला । विशेष—यह बंगाल और मध्य, पश्चिम तथा दक्षिण भारत में - रेहन रखी हुई जमीन का मालगुजारी देता है। होता है। इसका रंग ऊपर से लाल होता है । इसकी लता गरंगा-संज्ञा पुं० [सं० गुरुग] [श्री गुरगो] १. गुरु का अनुगामी । बहुत बड़ी होती है। चेला । शिष्य । २. टहलुपा । नौकर । छोकरा । अनुवर । ३. गरवत - संशा स्त्री० [अ० गुर्वत] १. विदेश में रहना । प्रवास । २. - घर। दूत । गुप्तचर । जासूस । परदेश । विदेश। २. कंगाली। दरिद्रता। . ....... मुहा---गुर्गे छूटनाम्दुतों या गुप्तचरों का किसी कार्य के लिये गुरविनी--संज्ञा स्त्री० [सं० गुर्विणी] दे॰ 'गु विणी' । .: प्रस्थान करना । गुरवी --वि० सं० गविन्] अभिमानी । घमंडी। जुरगावी : संज्ञा पुं॰ [फा०] मुंडा जूता। गुरमुख- वि० [हिं० गुरु+मुख] जिसने गुरु से मंत्र लिया हो। गुरच-संश पुं० [सं० गुडूची] दे० 'गुरुच' । दीक्षित । दीक्षाप्राप्त । गुरचना-क्रि० अ० [हिं० गुरुच] १. किसी वस्तु का उलझकर टेढ़ा गुरमखी-संज्ञा श्री० [हिं० गुरुमुखी] दे० 'गुरुमुखी' । मेढ़ा होना । २ आपस में उलझना । गुरम्मर--संचा पुं० [हिं० गुड़+अंब मोटे ग्राम का वृक्ष। ग्राम का गुरचियाना-क्रि० अ० [हिं० गुरुच] सिकुड़कर टेढ़ा मेढ़ा हो जाना। वह वृक्ष जिसका फल बहुत मीठा होता हो। उ०-दृक्ष - गुरची-संथा श्री० [हिं० गुरुच] सिकुड़न । वट । वल । गुरम्मर वैठि अमृत फल खाइए । जन्म जन्म को भूख सो तुतं । . गुरचों-संथा स्त्री० [ अनु.] परस्पर धीरे धीरे बातें करना । बुझाइए।--कवीर (शब्द०)। F कानाफूसी। गुरम्मा-नशा पुं० [हिं० गुडंबा] दे० 'गुडवा' । यौ-गुरचौं गुरचों। गुरवार-40 पुं० [सं० गुरुवार दे० 'गुल्वार' । क्रि० प्र०—करना । —होना । - गुरवो-वि० [सं० गवं] घमंडी । अहंकारी । उ०-देहे कृष्ण दूसरी - गुरज-संच पुं० [फा० गुर्ज] दे॰ 'गुर्ज' । उरवी । गुरु के सरिस बुझाक्त गुरवी ।--(शब्द०)। गुरजा-संवा पुं॰ [देश॰] एक प्रकार का पक्षी जिसे लोवा कहते हैं। गुरसल-संज्ञा पुं॰ [देश॰] गिलगिलिया । सिरोही। फिलहँटी। : . - गुरझन-श्री० [हिं० गुरझना] उलझन । पेंच की बात । ग्रंथि। गुरसी-मंदा श्री० दे० [हिं०] 'गोरसी' या 'बोरसी' । गुरझनाः क्रि० स० [हिं० उलझना] उलझना । .: गुरसुम-संचा पुं० [देश॰] सोनारों की एक प्रकार की छेनी। -.. गुरझनि -संशा सी० [हिं० गुरझन] दे० गुरझन' । गुरहा–संधा पुं॰ [देश॰] १. वह तम्ता जो छोटी नावों में अंदर की - गुरझियाना-क्रि० अ० [हिं० गुरझना] सिकुड़कर टेढ़ा हो जाना । और दोनों सिरों पर जड़ा रहता है । इन्हीं तख्तों में से एक ....... - गांठ या उलझन पड़ना।। पर बेनेवाला मल्लाह बैठता है। २. एक प्रकार की छोटी -- गुरझियाना -किस० [हिं० गुरझना] गाँड डालना या उलझाना। मछली जो प्रायः एक बालिश्त लंबी होती है। यह उत्तर प्रदेश

- गुरण-संज्ञा पुं० [सं०] प्रयत्न । चेप्टा । उद्योग [को०] ।'

बंगाल और आसाम की नदियों में पाई जाती है। ... गुरदा संधा पुं० [फा० सं० गोर्द] १. रीढ़दार जीवों के अंदर का एक गराइए---संवा बी० [हिं० गोराई] दे० 'गुराई'। .. अंग जो पीठ और रीढ़ के दोनों ओर कमर के पास होता है। गुराई-संश बी० [हिं० गोरा] ३० 'गोराई। - विशेष - इसका रंग लाली लिए भूरा और याकार आलू का सा गुगउप -संश सी० [हिं० गुराव] दे॰ 'गुराव' । होता है। इसके चारो ओर चरबी मढ़ी होती है। साधारणतः गुराउ-संश पुं० [हिं० गोरा गुर+ग्राउ (प्रत्य॰)] गोरापन । जीवों में दो गुरदे होते हैं जो रीढ़ के दोनों ओर स्थित रहते गोराई। हैं । शरीर में इनका काम पेशाव को बाहर निकालना गाव-संथा पुं० [देश॰] १. तोप लादने की गाड़ी। उ०—निमि घर- और खून को साफ रखना है। यदि इनमें किसी प्रकार का नाल और करनाले सुतरवालजंजाल । गुर गुराब रहँकले भले . दोष आ जाय तो रक्त बिगड़ जाता और जीव निर्वल हो तह लागे विपुल बयाल।-रघुराज (शब्द०)। २. वह बड़ी ... जाता है। मनुष्य में बांया गुरदा कुछ ऊपर की और और नाब जिसमें केवल एक मस्तूल हो (लश)। ... दाहिना कुछ नीचे की ओर हटकर होता है । मनुष्य के गुरदे गुरावा-संशा पुं० [हिं० गुरिया] १. चौपायों को खिलाने के लिये . प्रायः ८-९ अंगुल लंबे, ५ अगुल चौड़े और २ अंगुल मोटे ....... होते हैं। चारा टुकड़े टुकड़े करने की क्रिया । २. वह हथियार जिससे

.. २.साहस । हिम्मत । जैसे-(क) वह बड़े गुरदे का आदमी है।

चारा काटा जाता है । गँडासा । .' (ख) यह बड़े गुरदे का काम है। ३. एक प्रकार की छोटी गुरिदा--संश पुं० [फा० गोईदह, ] गुप्तचर । भेदिया। गोइंदा। तोप। ४. लोहे का एक बड़ा चमचा या करछा जिससे गुड़ जैसे-फोतवाल तथा उनके गुरिंदों ने छेदालाल जी का जीवन बनाते समय उबलता हुमा पाग चलाते हैं। भारभूत कर दिया |--प्रताप (शब्द०)। गुरनाल-क्रि० स० [हिं० घुलना] गलना । घुलना । मुरिदारू-संशा [फा० गुर्ज] १. गदा 1--(व.)। ८०-यां गुरनियबालू-संच पुं० [देश॰] रतालू, जमोकंद आदि की जाति का आयुधि नुरिद सदाई। महि पर पटकत परि मर जाई।- .. एक कंद । रघुराज (शब्द०)। २. गुर्ज। . . .