पृष्ठ:हिंदी शब्दसागर भाग ३.pdf/२२५

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. गुणानुरोध गुल्लक्षण १३०२ - गणलक्षण-संज्ञा पुं० [मं०] प्रांतरिक गुण का परिचायक चिह्न क्रि० प्र०—करना ।—लगाना ।-सीखना । संकेत हो । ' गुणाकर-वि० [सं०] गुणों की खान । अत्यंत गुणी। । - गणलयनिका संज्ञा प्रो० [सं०] खेमा। तंबू [को०। गुणाकार-वि० क्रि० वि० [सं०] गुणा के चिह्न जैगा [को०] । गणलयनो-संजा श्री० [सं०] खेमा । तंबू (को०)। गुणागार-वि [सं०] गुणों का भंडार । अत्यंत गुणी । .. . गुणवंत-वि० [मं गुणवत्][वि० सौ गुणवतो] जिसमें गुण हो । गुणी। गुणाढ्य'-वि० [सं०] गुणपूर्ण। बहुत गुणोंवाला। गुणवचन-संज्ञा पुं० [सं०] गुण का परिचायक शब्द । विशेपण किो०]। गुणाढय-मंशा पुं० [सं०] एक प्रसिद्ध कवि । गुणवती-वि० श्री० [सं०] गणवाली । जिसमें कुछ गुण हो। विशेप-इसने पैशाची भाषा में वह बड़ा ग्रंथ लिखा था जिसके गणवाचक --वि० [सं०] जो मुरण को प्रकट करे । आधार पर पीछे से क्षेमेंद्र ने वृहत्कथामंजरी और सोमदेव ने - यौ०-गुणवाचक संज्ञा-व्याकरण में वह संज्ञा जिससे द्रव्य का कथासरित्सागर नाम की पुस्तकें लिखीं। कथासरित्सागर में नुण सूत्रित हो। विशेषण । गुणाढच की कथा इस प्रकार लिखी है। प्रतिष्ठानपुर में गुणवाचक - संचार [सं०] गुण का परिचायक शब्द । विशेषण (को० । सोमशर्मा नाम का एक ब्राह्मण रहता था, जिसे अतार्थ - गुणवाद-संवा पुं० [सं०] मीमांसा में अर्यवाद का एक भेद । नाम की एक परम सुंदरी कन्या थी। इस कन्या के साथ विशेष-कुमारिल के अनुसार अर्थवाद तीन प्रकार का है, नागराज वासुकि के छोटे भाई कौति ने गांधर्व विवाह किया। इसी कन्या के गर्भ से गुणाडय का जन्म हुमा । . गुणवाद, अनुवाद और भूतार्थदाद । जहाँ विशेषण और विशेष्य का एक में अन्वय करने से ठीक अर्थ नहीं सिद्ध होता वहाँ गुणाढ्य के बचपन ही में उसका पिता मर गया। गुसाढ्य विशेषण का कुछ दूसरा अर्थ कर लेते हैं और उसे अंगकथन ने दक्षिणापय में जाकर खूब अध्ययन किया और वह बड़ा प्रसिद्ध विद्वान् होकर प्रतिष्ठान देश के राजा सातवाहन की या गुणवाद कहते हैं । जैसे—यक्ष मानः प्रस्तरः । प्रस्तर सभा में रहने लगा। राजा संस्कृत नहीं जानता था, मूर्ख शब्द का अर्थ है कुशमुष्टि । यहाँ विशेपण और विशेष्य के था । एक दिन वह अपनी रानी के व्यवहार से अपनी मूर्खता द्वारा कोई अर्थ नहीं निकलता इससे प्रस्तर का कुशमुष्टिधारी अर्थ कर लिया गया । पर बड़ा लज्जित हुया और उसने संस्कृत सीखने का विचार किया । गुणाढय ने उसे छह वर्षों में व्याकरण सिखा देने का गुणवान-वि० [सं० गुणवत्] [वि०सी० गुणवती] गुणवाला । गुणी । वादा किया। शर्व शर्मा नामक एक पंडित ने छह महीने में गुणविवि-संज्ञा स्त्री० सं०] मीमांसा में वह विधि जिसमें गुण कर्म ही राजा को व्याकरण सिखा देने को कहा । इसपर गुणाढ्य का विधान हो। जैसे-'दध्ना जुहोति' दही से अग्निहोत्र .:. करे। अग्निहोत्र करने का विधिवाक्य दूसरा है। अतः उसी ने चिढ़कर कहा 'यदि तुम राजा को छह महीने में व्याकरण सिखा दोगे तो मैं संस्कृत और प्राकृत आदि समस्त देशी अग्निहोत्र के अंतर्गत जो पाहुति का विधान है उसकी विधि भापात्रों का व्यवहार छोड़ दूंगा।' पार्यशर्मा ने कलाप -.. . इस वाक्य में है। वि० दे० 'कर्म'। व्याकरण का निर्माण करके छह महीने में राजा को व्याकरण "..गुणवृक्ष, गुणवृक्षक-संज्ञा पुं॰ [मं०] नाव बांधने का खूटा (को०) । सिखा दिया । इसपर अपमानित गुणाढ्य ने वस्ती का रहना

गुणवृत्ति-संज्ञा स्त्री॰ [सं०] गौण वृत्ति (को०)।

छोड़ दिया और वह जंगल में जाकर पिशाचों के बीच रहने गुणव्रत - संज्ञा पुं० [सं०] जैनियों में मूलततों की रक्षा करनेवाले तीन और उन्हीं की भाषा का व्यवहार करने लगा। वहीं पर उससे -... ... ... व्रत-दिव्रत, भोगोपभोग नियम और अनर्थ दड निषेध।। काणभूति से साक्षात्कार हुग्रा जो कुवेर के शाप से पिशाच - गुणशब्द-संज्ञा पुं० [सं०] विशेषण (को॰) । हो गया था। कारगति के मुख से उसने पुष्पदंत का कहा गृगसंग-संज्ञा पुं० [सं० गुणसंडा १. गुणों का मेल । २. इंद्रिया- या सप्तकथामय उपाख्यान सुना और उसे लेकर सात लाख सक्ति (को०)। श्लोकों का, पिशाच भापा का एक ग्रंथ लिखा। राजसभा में गुणसागर --वि० [सं०] गुणों का समुद्र । गुणों से भरा। उपस्थिति होने पर, ग्रंथ की भापा पैशाची होने से लोगों ने गुणसागर-संज्ञा पुं० [सं०] १. हिंडोल राग का एक पुत्र । २. पुनः उसकी उपेक्षा की। दुःची गुणाढच वन में पशुपक्षियों - ब्रह्मा (को०)। ३. गुणी व्यक्ति [को०] । को यह ग्रंथ सुनाने और प्रत्येक पृष्ठ को अग्नि में जलाने गगहीन ----वि० सं०ी गणरहित । जिसमें गण न हो (फो। लगा। कालांतर में राजा ने अपनी भूल का परिमार्जन किया - गुणाक-संज्ञा पुं० [सं० गुणाङ्क वह अंक जिसको गुणा करना हों।" पर ग्रंथ का एक अंश ही बचा पाए जिसके आधार पर सोम- गुणा-संज्ञा पुं० [सं० गुणन] [वि. गुण्य, गुपित] गणित की एक देव और क्षेमेंद्र ने अपने अपने ग्रंथ लिने । .: 'क्रिया । एक अंक पर दूसरे अंक · का ऐसा प्रयोग जिसके गुणातीत -वि० [सं०] गुणों से परे। जो गुणों के प्रभाव से अलग ' द्वारा वही फल निकलता है जो पहले अंक को उतनी ही बार हो। त्रिगुणात्मिका से निलिप्त । । । अलग-अलग रखकर जोड़ने से निकलता है जितना दूसरा अंकगुरगातीत-संज्ञा पुं० परमेश्वर। .. . गुणानुरोध- सं युं० [सं०] अच्छे गुणों की अनुकूलता (कोला । ... है। जरव । .