पृष्ठ:हिंदी शब्दसागर भाग ३.pdf/२०५

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  • गिनोगवट

१२६२ गिरगिट्टी वर्षा ऋतु के आरंभ में यह थोड़ी सी भी वो दी जाय तो गिरंट--संज्ञा पुं० [अं०] १.एक रेशमी कपड़ा जो प्रायः गोट लगाने - बहुत दूर तक फैल जाती है। इसके लिये घोड़े की सड़ी हुई के काम में आता है। ग्वारनट ।२.एक प्रकार की साधारण लीद की खाद बहुत अच्छी होती है। यदि इसपर उचित सूती मलमल जो बस्ती जिले में बनती है। - . ध्यान दिया जाय तो साल में इसकी छह फसलें काटी जा गिरंथा -संवा पुं० [सं० ग्रंथ ] दे० 'ग्रंथ'। उ० सुनियत वेद सकती हैं। .. गिरंथ पुकारत, जिन मति जान विचारी।-जग० श०, पृ. गिनीगट-संज्ञा स्त्री॰ [अं॰] एक प्रकार की लंबी घास। ...११६ । . विशेप-यह अफ्रीका के गिनी नामक देश में होती है। अब गिरंदलु-संज्ञा पुं० [फा० गौर ] फंदा । उ०--दे० गिरंद गिरदा यह भारत में भी लगाई गई है और खूब होती है। .. हूवा वे जिंद असाडी छीनी है।-धनानंद, पृ० १८०। . गिनीगोल्ड-संज्ञा पुं० [पं०वह सोना जिसमें तावा मिला हो। गिरंदा-वि० [हिं० गिरंद] फंदा डालनेवाला । पकड़नेवाला । मिनीग्रास-संवा लो० [अं॰] दे० 'गिनीगवट' । गिरंम-वि० [?] भारी। उ०–तरकस पंच गिरंग तीन प्रति गिन्नो'-संडा बी० [हिं० घिरनी ] घुमाने या चक्कर खिलाने की पगत तीन सह ।-पृ० रा०, ६ । २५ । .:. क्रिया । चक्कर। गिरद -संञ्चा पुं० [सं० गिरीन्द्र] दे० 'गिरीद्र'। उ०-उरजलता .. मुहा०-पिन्नी खाना=चक्कर मारना ।--(पतंग के लिये प्रायः . .लागी असुर, गिरद दुई वल आप।-रा००, पृ० २६१ । ... बोलते हैं।) गिन्नी खिलाना=चक्कर देना। गिरंदा@-वि० [हिं० गिरंदी] फंदा लगानेवाला । वंधन बाँधने- गिनी-संज्ञा ली अंगिनी] दे० 'गिनी'। . . ... वाला । उ०-दे गिरद गिरंदा हूवा वे जिंद असाडी छीनी गिब्बन -संज्ञा पुं॰ [अं॰] एक प्रकार का वंदर जो सुमात्रा जावा है। अनानंद, पृ० १६० । . आदि द्वीपों में होता है। गिर-संज्ञा पुं० [सं० गिरि] पहाड़। पर्वत । उ०---जहें यह गिरि -":विशेष-इसके पूछ और गालों की थैलियां नहीं होती। इसको गोबरधन सोहै। इंद्र वराक या आगे को है। नंद० ग्रं०, ... बाँह बहुत लंबी होती हैं और प्रायः जमीन तक पहुचती हैं। ...पृ० १६०1 २.संन्यासियों के दस भेदों में से एक। . इसकी प्राकृति मनुप्य से बहुत मिलती जुलती होती है : किसी ३. काठियावाड़ देश का भैसा । - किसी जाति के गिब्बन बौड़ा बहुत गाते भी सुने गए हैं। गिरई-संज्ञा स्त्री दिश०] एक प्रकार की मछली जो सौरी मछली गिम -संज्ञा पुं० [सं० ग्रीवा] गला । गरदन । से छोटी होती है। गिमटी संशो०- [अं० डिमटी] एक प्रकार का मजबूत सूती गिरगट-संज्ञा पुं० [हिं० गिरगिट] दे॰ 'गिरगिट' उ०-माया की . कपड़ा। मकड़ी ने जाल विछाया। गो के जो गिरगट ने सैन F विशेप-इसकी बुनावट में बेल वूटे होते हैं और यह प्रायः सुनाया ।-संत तुरसी०, पृ. ८८ ! . विछाने के काम में पाता है। गिरगिट-संक्षा पुं० [सं० कृकलास या गलगति] छिपकली की जाति गिमटी-संवा मी० [हिं० गुमटी] गोलाकार या चौकोर कोठरी या का प्रायः एक वालिपत लंबा एक जंतु । उ-गिरगिट छंद - कमरा जो रेलवे लाइन के किनारे बना होता है। धरइ दुख तेता । खन खन रात पीन खन सेता ।-जायसी . विशेष- ऐसे कमरे बहुधा उन जगहों पर बने होते हैं और (शब्द०)। : - अावाजाही अधिक होती है। गाड़ियों के आने जाने पर झंडी विशेष यह सूर्य की किरणों की सहायता से अपने शरीर के - दिखानेवाला रेलवे कर्मचारी वर्षा और धूप से बचने के लिये अनेक रंग बदल सकता है। इसका चमड़ा सदाबहुत ठंढा रहता ... इसका उपयोग करता है। है और यह कीड़े मकोड़े खाता है । गिगिटान। गिरदीना। 5. गिमार-संज्ञा पुं० [हि नमार या गवार] दे० 'वार' । उ०- महा.- गिरगिट की तरह रंग बदलना=बहुत जल्दी संमति या ... इण हति साहिब ना चलइ चालइ तिके निमार-ढोला०, सिद्धांत बदल देना । कभी कुछ कभी कुछ कहना और करना। - . टू०२४६ ।। गिरगिटाना-संज्ञा पुं० [हिं० गिरगिट] दे० 'गिरगिट'। - गिव-संज्ञा पुं०म० ग्रीवा दे० गिउ' । उ०-जेहि कारन गिय गिरगिट्टी-संघा सी० [?] समस्त उत्तर भारत, चीन और - काथरि कंथा। जहाँ सो मिल जाउ तेहि पंथा।—जायसी ऑस्ट्रेलिया तक पाया जानेवाला एक प्रकार का छोटा पेड़ ग्रं० (गुप्त), पृ०२१७। . . . जिसकी छाल खाकी रंग की होती है। 6. गियान-संपा पुं० [सं०ज्ञान] दे॰ 'ज्ञान' । उ०—सेवक लिए प्रेम विशेष—इसकी पत्तियाँ छोटी, पतली और गहरे हरे रंग की जल झारी, खरिका ब्रह्म गियान । घरम०, पृ०.३०। . होती हैं, जिनका कपरी भाग बहुत चमकीला होता है गरमी

गियानी-वि० [हिं० ज्ञानी दे० 'ज्ञानी'। उ०-हम लोग मूरख ... और बरसात में इसमें सफेद रंग के बहुत सुगंधित फल लगते

...... ठहरे और तुम गियानी ।--मैला०, पृ० १२.1 ... हैं और जाड़े में एक प्रकार के छोटे फूल लगते हैं, जिनका रंग गयाह संशा पुं० [सं० हय ?] एक प्रकार का घोड़ा। ताड़ के पके .. पकने पर लाल या गहरा नारंगी होता है। इसकी लकड़ी . .. फल के रंग का अश्व । किया। उ०-हाँसल भीर, गियाह ....मुलायम होती हैं और चीड़ के स्थान में काम आती है। ... . चबाने!-जायसी (घाब्द०)। .. .. .. . यह वृक्ष यानों में शोभा के लिये लगाया जाता है और लोग