पृष्ठ:हिंदी शब्दसागर भाग ३.pdf/१७०

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गर्वाट १२४७ गलगल गाट--संघा पुं० [सं०] द्वारपाल । चौकीदार [को०] । गर्वाना--क्रि० अ० [सं० गर्व ] गर्व होना । अभिमान होना। घमंड या अहंकार होना । उ०---कहा तुम इतनेहि को गर्वानी। जोवन रूप दिवस दसही को ज्यों अंगुरी को पानी ।--सूर (शब्द०)। गर्वित-वि० [मं०] गर्वयुक्त । अभिमान भरा । घमंडी। गविता--संज्ञा जी मं०] वह नायिका जिसे अपने रूप और गुण आदि का धमंड हो। यह दो प्रकार की होती है-रूपगविता और प्रेमगविता। गावष्ठ--वि० [सं०] अहंकार करनेवाला । गर्वयुक्त । घमंडी।' गर्वी--वि० [सं० गविन्] घमंडी । अहंकारी। मगरूर । गर्वीला-वि. [सं० गर्व + हि० ईला (प्रत्य॰)] [स्त्री० गर्वीली] घमंड से भरा हुअा । अभिमानयुक्त । घमंडी। उ०--जिनि वह सुधापान मुख कीन्हों वे कैसे कटु देखत । त्यों ए नैन भए गर्वीले अब काहे हम लेखत ।--सूर (शब्द०)। गर्वोक्ति--संज्ञा स्त्री० [सं०] गर्वपूर्ण कथन या बात। गर्हण---संज्ञा पुं० [सं०] [संज्ञा स्त्री० गर्हणा] [ वि० गर्हगीय, गहित, गा, गहितव्य] निंदा । शिकायत ।। गर्हणीय-वि० [सं०] निंदा करने के योग्य । बुरा । निंदनीय । गरे-संशा स्त्री० [सं०] निदा। गहित-वि० [सं०] जिसकी निंदा की जाय । निदित । दूपित। वुरा। गहितव्य-वि० [सं०] निंदनीय । गर्हणीय [को०] । गहीं-वि० [सं० गहिन् ] निंदा करनेवाला । निंदक [को०] । गर्दा-वि० [सं०] निंदा करने योग्य । निंदनीय । यो-गावादी = वितथ या निंद्य भापण करनेवाला। गणिक-वि० [सं०] दुष्ट । बुरा [को॰] । गलंतिका--संसा श्री० [ मं० गलन्तिका ] १. छोटा कलश । २. छेद युक्त घड़ा जिससे शिवलिंग आदि पर जल का अभिपेफ होता रहता है [को०। गलंती-संज्ञा पी० [• गलन्ती] दे० 'गलंतिका' । गलंश-संषा स्त्री० [सं० गलितांश वह जायदाद जिसका मालिक मर गया हो और उसका कोई उत्तराधिकारी न हो। गल-संशा पुं० [सं०] १. गला । कंठ । गरदन । २. राल । ३. गड़ाकू नाम की मछली। ४. एक प्राचीन वाजे का नाम । ५. रस्सी (को०)। ६. एक प्रकार की लंबी घास । बृहत्काश (को०। गलई-संज्ञा स्त्री॰ [हिं०) दे० 'गलही'। गलकंवल-संवा पुं० [सं० गलकम्वल ] गाय के गले के नीचे का वह भाग जा लटकता रहता है। झालर । लहर । उ०—अंतर अयन अयनु भल थनु फल वच्छवेद विश्वाती। गलकंबल वरना विभाति जनु लूम लसति सरिता सी---तुलसी (शब्द०)। ... गलक-संप पुं० [सं०] १. गला। २. गडाकू मछली। ३. मोती [को०]। गलका'- संसा पुं० [हिं० गलना] १. एक प्रकार का फोड़ा जो हाथ की गलियों के अगले भाग में होता है और बहुत कष्ट देता है। २. एक तरह का चाबुक । गलकोड़ा। गलका-संज्ञा पुं० [देश॰] खट्ट या कच्चे फल का शकर तथा मसालों के साथ बनाया हुन्मा अचार । उ0--कबीर मन विकर पड्या गया स्वाद के साथि । गलका खाया बरजता अब क्यूआ हाथि।-कबीर ग्रं॰, पृ० २६ गलकोड़ा-संशा पुं० [हिं० गला+कोड़ा] १. मालखंभ को एक कसरत। विशष-इसम पीठ की तरफ गरदन पर से वेत को ले जाकर एक हाथ में उसे लपेट लेते हैं और दूसरी ओर के पांव में अंटी देकर गले के जोर पर लटक जाते हैं। २. कुश्ती का एक पॅच । विशेष—इसमें एक बगल में शत्रु की गरदन दवाकर दूसरा हाय उसकी बगल से पीठ पर ले जाते हैं और उसे उलटकर टाँग के सहारे गिरा देते हैं। ३. एक प्रकार का कोड़ा या चावुक । गलखप-पंज्ञा स्त्री० [सं० गल्प, प्रा० गल्ल या देश.] गलगोज । .चखचख। झकझक । उ०-हीरा गया तो देखा अवासी और बूढ़ी खपट मुगलानी में गलखप हो रही है।—फिसाना०, भा० ३, पृ० २१४। गलखोड़ा-संञ्चा पुं० [हिं० गला+कोड़ा] दे० 'गलकोड़ा। गलगंजना-कि० अ० [सं० गल+गर्जन, ] जोर से आवाज करना। भारी शब्द करना। उ०—बीस सहस घहराहिं निसाना । गलगंजहिं भेरी असमाना । —जायसी (शब्द०)। गलगंड-संञ्चा पुं० [सं० गलगण्ड] गले का एक रोग । घेघा। विशेष- इसमें गले में सूजन हो पाती है और क्रमशः बढ़ते बढ़ते सामने एक गांठ सी निकल पड़ती है। यह गाँठ भिन्न भिन्न प्राकार की होती है; और कभी कभी इतनी बढ़ जाती है कि थैले की तरह गले में लटकने लगती है । वैद्यक के अनुसार यह रोग तीन प्रकार का माना गया है-वातज, कफज प्रार 'मेदज । डाक्टरों का कथन है कि पहाड़ी तराइयों में लोगा को, विशेपकर स्त्रियों को गलगंड रोग हो जाता है । उनके मत - से इसमें गले के एक या दोनों ओर की झिल्ली फूल पाती है। गलगंड संञ्चा पुं० [देश॰] हरगीला नाम की चिड़िया। गलगल-संद्या स्त्री० [देश॰] १. मैना की जाति की एक चिड़िया । सिरगोटी। गलगलिया। विशेष--यह कुछ सुर्सी लिए काले रंग की होती है। इसके गले पर दोनों ओर पीली या लाल धारियाँ होती हैं और इसका दुम के नीचे का भाग सफेद होता है। २. एक प्रकार का बहुत बड़ा नीबू । विशेष-यह चकोतरे के बरावर होता है और पकने पर गहर ।। वसंती रंग का हो जाता है। यह बहुत अधिक खट्टा होता है और अचार डालने तथा अौषधियों के काम में आता है। . ३. चर्वी की बत्ती का एक टुकड़ा। विशेष—यह जहाज में समुद्र की गहराई नापनेवाले यंत्र में संसि की एक नली से लगा रहता है। यह नली वार वार समुद्र में