पृष्ठ:हिंदी शब्दसागर भाग ३.pdf/१५३

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-गफलत १२३० गभार पहा गव्यू विशेष यह शब्द ऐनी, बुनावट के लिये प्रयुक्त होता है, जिसके विशेप-कहते हैं कि यह पहले नंबला नानक स्थान से प्राता . तागे घने अर्थात् परस्पर बुब मिले हों। जैसे,—वह कपड़ा था। गंवरून को कोई कोई फारत के वंदर अब्बास का पुराना - गफ है। यह खाट गफ दुनी है। नाम बतलाते हैं और कोई शाम देश (सीरिया) का गंबहनिया गफलत-संदा श्री० [अ० गफलत] असावधानी। बंपरवाई।२. चेत या नामक नगर बतलाते हैं। सुंध का अभाव । वेवरी । ३. प्रमाद । भुज । चूक । भ्रम। गवी--वि० [अंगवी] मंदबुद्धि । कमअक्ल [को०] 'गफिलाई@---मंशा खी० [फा० नाफिल] १. असावधानी। वेपर- गवीना-संज्ञा पुं० दश० कतीला । कतीरा। - बाई । २. 'भ्रम। मोह । उ०-ऐसा योग न दवा भाई। गन्ध -संश पुं० म० गर्व, प्रा. गब्ब] गई। अभिमान | अकड़। .. नुला फिर लिए गफिलाई ।-कबीर (शब्द०)। ३०-नहिं गब्बत करि गब्ब, नहिन गज्जत घन गज्जत ।- गफ्फार-वि० [अ० सपफार] बहुत बड़ा दयालु । ईश्वर का एक पृ० रा०६ १ १०३ । विशेपण। उ०-- दातरा है तू सत्तार, गफ्फार गमबार गवना@-क्रि० प्र०[सं० गमन, प्रा० गवण ] दे० 'गमना'। है। दविखनी॰, पृ० २३० । उ०-नाहि गब्बत करि गब, नाहन गम्मत धन गज्जत ।-- गबड्डी-संज्ञा झो० [हिं०] दे० 'कबड्डी' । पृ०रा०६।१०३६ गवदा वि० पुं० [ हि गवद ] [वि० सी गवदी] ३० गवद । 1 गव्वर वि० [सं० गर्व, गर्वर, पा. गन्ध] १. धर्मडी । गर्वीला । गवदी-संश्था पुं० [देश॰] एक प्रकार का छोटा पेड़। अहंकारी। उ० –सजि चतुरंग वीर रंग में तुरंग चढ़ि सरजा विशेष--इसकी लकड़ी बहुत मुलायन और डालियाँ बनी तथा सिंवाजी जंग जीतन चलत हैं। भूषन भनत नाद विहद नगारन एतनार होती हैं। इसकी पत्तियां तीन चार इंच लंबी होती के नदी नद मद गब्बरन के रलत हैं। --भूपण (शब्द०)। ... हैं और उनके पीछे की ओर रोई होती है। माय फागुन में दौड़। ३. कहने पर किसी काम को जल्दी न करनेवाला या ..इसमें सुनहले पीले रंग के फूल लगते हैं। यह पेड़ सिवालिक पूछने पर किसी बात का जल्दो उत्तर न देनेवाला। मदर । की पहाड़ियों तथा उत्तरीय अवध, बुदेलखंड और दक्षिण में ४. बहुमूल्य । कीनती। जैन, बर माल । ५. मालदार । ' होता है। इसकी छाल से कतीरे की तरह का एक प्रकार का धनी । जैसे,-गब्बर असामी। .. सफेद नोंद निकलता है। गवां संज्ञा पुं० [अ० गवी। मंद । मुस्त । कमजोर। नरद्द-वि० [हिं० गावदी] पशु की ती बुद्धिवाला । जड़ । मूर्ख। गभा-पंक्षा पुं० [सं० गर्न पा० गन्न ] १. वह बिछावन जिसमें गवन --शा पुं० [अ०] व्यवहार में मालिक के या किसी दूसरे के रूईभरी हई हो। गद्दा । तोशक । २. चारे का गट्ठा । . साये हुए माल को खा लेना। खयानत । गत-संशा पुं० [फा०] जरतुश्त का अनुयायो । पारस देश को अग्नि- क्रि० प्र०- करना। पूजक । पारती।

  • गदर-संका पं० [सं० स्कमर ] वह पाल जो सब पालों के ऊपर गभ-संचा पुं० [सं०] भग।

... होता है। गभरू-संथा पुं० [फा० खूबरू, हि० गवरू] 1. 'गवरू' । उ०-सांवला • गहर-० वि० [हि शीव्रता। जल्दीबाजी। सोहन मोहन गमत इत बल ग्राइ गया। घनानंद, पृ० ३४०। - गो०-गवर गवर। गभस्तल-संश पुं० [सं० गमस्तिमान्] गभस्तिमान् द्वीप का नाम । नवरगंड - वि० [हिं० गवर सं० गएड-मूर्ख] नवं । अज्ञानी। गभस्ति '-संक्षा पुं० [सं०] १. किरण । २. सूर्य । ३.बांह । हाथ । जड़ 13०-क्या अमा के योग्य पर जमा न करपा, अयोग्य गभस्तिग-संज्ञा सौअग्नि की स्त्री। स्वाहा । पर क्षमा करना, गबरगंड राजा के तुल्य यह कर्म नहीं है ? ~ गभस्तिकर- संज्ञा पुं० [सं०] सूर्य । प्रादित्य को। सत्यार्थप्रकाश (शब्द०)। गभस्तिनेमि-संवा पुं० [सं०] बिष्ण का एक नाम [को॰] । गबरहा-वि० [हि गोबरहा गोबर मिला हुला। गोबर लगा। गभस्तिपाण-संश पुं० [सं०] सूर्य। . मुहा०-गवरहा करना बरतन के साँचे पर गोबर और मिट्टी गभस्तिमान् संसा पुं० [३० मनस्तिमत्] १. सूर्य । २. एक द्वीप चढ़ाना। . का नाम । ३. एक पाताल का नाम । गवराहु-वि० [हिं०] दे० 'गब्बर'। गभस्तिमान्'-वि० किरणयुक्त । प्रकाशयुक्त । चमकीला। गबरू'-वि० [फा०ल बल १. उमड़ती जवानी का । जिसे रेव गभस्तिमाली संवा पुं० [सं० गनस्तिमालिन् ] सूर्य । किरणमाली टती हो । पट्टा। उ०- काहे को भये उदात्त संया गवली को। तुमरी खुशी से खुशी मोरे लवर। दुर्गाप्रसाद मिश्र गभस्तिहस्त-संग्या पुं० [सं०] सूर्य ।। _...(शब्द०)। २.भोलाभाला। सीधा । गभस्थल-संरा पुं० [सं० गर्ना तमान् हि० गभस्तल ] गस्तिमान गवर-संशा पुं० दूल्हा । पति। द्वीप। उ०-द्वीप गमस्थल यारत परा। दीप महुस्यल मानस -गवरून--संज्ञा पुं० [फा० गम्बस्न चारखाने की तरह का एक नोटा हरा। जायसी ग्रं, पृ० १०॥ .: कपड़ा जो लुधियाने में बुना जाता है। . गभार -संधा पुं० [सं० गहर, प्रा० गदमर, गहर] अनेक प्रनयों