पृष्ठ:हिंदी शब्दसागर भाग ३.pdf/१३३

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गंजपाल १२०९ .. गज मुक्ता : गजपाल-संज्ञा पुं॰ [सं०] महावत । हाथीवान । उ०-क्रोध गजपाल २.आपत्ति। श्राफत । विपत्ति। अनर्थ । जैसे,—उनपर गजब के ठठकि हाथी रह्यो देत यंकुस मसकि 'कह सकान्यो। -सूर० टूट पड़ा। . १०१३०५४ । क्रि० प्र०—पाना।-फरना 1---टूटना । ढानां ।- तोड़ना । ---... गजपिप्पली---संज्ञा श्री० [सं०] मझोले कद के एक पौधे का नाम गिरना।-लाना ।—पड़ना। जिसके पत्ते चौड़े और गुदार होते है और जिसके किनारे पर ३. अंधेर । अन्याय । जुल्म । जैसे,-क्या गजब है कि तुम दूसरे । लहरिया नोकदार कटाव होता है। - की बात भी नहीं सुनते । ४.' विलक्षण वात । विचित्र वात। विशेष--इसमें दो तीन पत्तों के बाद वीच से एक पतला सींका गुहा०-गजब का विलक्षण । अपूर्व । बड़ा भारी। अत्यंत।। निकलता है जिसके सिरे पर दस वारह अंगुल लती एक इंच अधिक । जैसे,—(क) वह गजब का चोर है । (ख) वहाँ के लगभग मोटी मंजरी निकलती है। मंजरी में छोटे छोटे गजब की भीड़ और गरमी थी (ग) उसको खूबसूरती गजव : फूल लगते हैं । यह मंजरी सुखाई जाती है और सूखने पर की थी। वाजारों में औषध के लिये विकती है। बाजार में इसके एक गजवदनल-संज्ञा पुं० [सं०] गणेश । उ०--जय गजवदन पडानन . . अंगुल मोटे और चार पाँच अंगुल लंवे टुकड़े मिलते हैं । स्वाद माता । जगतजननि दामिनि दुति गाता। मानस, १ । २३५ । में यह मंजरी कडवी घोर चरपरी होती राक में यह गजवरन@t-संर पुं० [सं० गज+धारण] किवाड़ों पर रक्षार्थ गरम, मलशोधक, कफ-वात-नाशक, स्तन को बढ़ानेवाली, लगाई जानेवाली मोटी नोकदार कीलें। उ०—पुष्ट द्वार रुचिकारक और अग्निदीपक मानी गई है और कहा गया है कि मजबूत कपाटन जड़े गजवरन ।-प्रेमघन०, पृ०६२।. पकने से पहले इसमें और भी कुछ गुण होते हैं। गजवसाधु-संक्षा पुं० [सं० गज+वश]. केला। अनेकार्थ, . पर्या०- करिपिप्पली। इभकरणा। कपिवल्ली। कपिल्लिका । पृ०१७। . वक्षिर । कोलवल्ली । चव्यफल । दीर्घग्रंथी । तैजसी । गजबाँक-संज्ञा पुं० [सं० गज + यल्गा>हिं० वाग] दे० 'गजबाग' । गजपीपर-संज्ञा स्त्री॰ [हिं० [ दे० 'गजपिप्पली'। गजबाग--संज्ञा पुं० [सं० गज+वल्पा>हिं० वाग] हाथी का अंकुश । गजपीपल-संज्ञा सी० [हिं०] दे० 'गजपिप्पली' । गजबीथी-संशा स्त्री० [सं०] शुक्र की गति के विचार से रोहिणी, गजपुगव-संज्ञा पुं० [सं० गजपुङ्गव] बड़ा यो विशाल हाथी [को०। मृगशिरा और पार्दा के समूह का नाम जिसके बीच से होकर गजपुट' संज्ञा पुं० [सं०] १. धातुओं के फूकने की एक रीति। . 'शुक्र गमन करे। विशेष—इसमें सवा हाथ संवा, सवा हाथ चौड़ा और सवा हाथ गजबीला -वि० [अ० गजव ---हिं० ईला (प्रत्य॰)] १. गजब .. गहरा एक गड्ढा खोदते हैं । उसमें पाँच सौ विनुए कंडे बिछा- का । २. गजब करनेवाला। कर बीच में जिस वस्तु को फूकना होता है, उसे रखकर गजबेली--संज्ञा स्त्री० [सं० गज-वल्ली] एक प्रकार का लोहा । ऊपर से फिर ५०० कंडे बिछाकर गड्ढों के मुह पर चारों ओर मुह पर चारा पार कांतिसार । उ०----भाला मारा गजबेली का सौहै निसरि गयो से मिट्टी डाल देते हैं। केवल थोड़ा सा स्थान बीच में खुला . . वहि पार ।-पाल्हा (शब्द०)। . छोड़ देते हैं। इस प्रकार जव सव ठीक कर चुकते हैं, तंब ऊपर से उसमें आग लगा देते हैं। धातु फूंकने की इस रीति गजभक्षक-संहा पुं० [सं०] पीपल । .. . गजभक्षा, गजभक्ष्याः संज्ञा स्त्री० [३०] शल्लकी । सनई [को०] ! को गजपुट कहते हैं । २. धातु को फूककर रस तैयार करने के लये वनाया जानेवाला । गजमंडल-संशा पुं० [सं० गजमएडल हाथी के माथे पर चित्रित : निश्चित मान का गडुढा।

. की हुई रंगीन रेखाएँ [को०] 1 ,

गजपुर-संज्ञा पुं० [सं०] हस्तिनापुर। ... गजमंडलिका-संचा स्त्री० [सं० गजमएडलिका रय के चारों ओर । गजपुष्प-संज्ञा पुं॰ [सं०] नागपुष्पी । नागदौन । .: . स्थापित हाथियों का मंडल या घेरा को०]। . . . गजपुष्पो- संज्ञा की० [सं०] दे० 'गजपुष्प' । गजमरिण संवा मी०, पुं० [सं०] गजमुक्ता । गजप्रिया संज्ञा स्त्री० [सं०] सलई । पालकी। गजमंद-संशा पुं० [सं०] हाथी का भवजल [को०] 1. ..' 'गजबंध · संज्ञा पुं० [सं० गजवन्ध] एक प्रकार का चिंत्रकाव्य । गजमनि-संज्ञा पी० पुं० [सं० गजमरिण] दे० ' 'गजमणि' । उ° विशेष-इसमें किसी कविता के अक्षरों को एक विशेष रूप से बीथीं 'सकल सुगंध वसाई। गजमनि रचि बहु चौक पुराई। हाथी का चित्र बनाकर उसके अंग प्रत्यंग में भर देते हैं। तुलसी (शब्द०)। ' . गजबंधन संज्ञा पुं० [सं० गजबन्यन ] [श्री० गजबन्धनी, गजवंधिनी] गजमाचल-संना पुं० [सं०] शादुल । सिंह [फो० । . हाथी के बाँधने का बूटा या स्थान । गजशाला [को०। गजमुकुता.---संक्षा स्त्री० [सं० गजमुक्ता] दे० 'गजमुक्ता' । मजव-संज्ञा पुं० [अ० गज ] १. कोप । रोप । गुस्सा। गज मुकुता हीरामनि चौक पुराइय हो ।-तुलसी ग्रं०, पृ० १॥ .. यो०- गजव इलाही ईश्वर का कोप। दैवी कोप । उ०—कापै गजमुक्ता-संज्ञा स्त्री० [सं०] प्राचीनों के अनुसार एक प्रकार का माता यो परैया. भयो गजब इलाही है।- पद्माकर (शब्द०)। विशेष-इस मोती का हाथी के मस्तक से निकलना प्रसिद्ध ह ___कि० प्र०-. पाना ।-टूटना !--- पड़ना। ' पर आजतक ऐसा मोती कहीं पाया नहीं गया। .. . . [सं०] शादुला सिंह