पृष्ठ:हिंदी शब्दसागर भाग ३.pdf/११८

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गंडा ११६४ गदम ३. घोड़ों के गले में पहनाने का पट्टा जिसमें कभी कभी गंडूप--संहा पुं० [सं० गण्डूप] [भी गंडूपा] . १. हथेली का गड्ढा । ..कौड़ियाँ और धरू के दाने भी गूथे जाते हैं। चूल्लू । २. कुल्ली। ३. हाथी की मू की नोक। गंडा--संक्षा पुं० [सं० गण्डक ] पैसे, कौड़ी आदि के गिनने में चार गंडोपधान, गंडोपवानीय-संज्ञा पुं० गण्डोफ्धान, गण्डोपवानीय] चार की संख्या का समूह । जैसे,-पात्र गंडे कौड़ियाँ, चार तकिया (को०)। गंडोपल-संज्ञा पुं० [सं० गण्डोपल] बड़ा शिलाखंड [को०] । गंडा-मंशा पुं० [सं० गण्ड : चिह्न] १. बाड़ी लकीरों की पंक्ति गंडोल-संज्ञा पुं० [सं०] १. कच्ची शकर । गुड़ । २. ईख । जैसी कनखजूरे की पीठ पर या साँप के पेट में देखी जाती है। इक्षु । ३.ग्रास । कोर। आड़ी धारी। २. तौने आदि चिड़ियों के गले की रंगीन धारी। गंडोलक-संज्ञा पुं० [सं० गल्टोलक] एक प्रकार का कीड़ा को । कंठा । हैमली। गंडोलकपाद, गंडोलपाद -संशा पुं० [सं० गण्डोलकवाद, गण्डोलपाद] - मुहा०-गंडा पड़ना-धारी होना वा निकलना। . फीलपाँव [को०] । गंडातावीज -संशा पुं० [हिं० गंडा+j० तावीज ] झाड़ फूक। गंतव्य वि० [सं० गन्तव्य] जाने योग्य । गम्य । चलने योग्य । उ०- जर मंतर । अपनी दुर्बलता बल सम्हाल गंतव्य मार्ग पर पर धरे।- गंडारि--संज्ञा श्री० [ मं० गण्डारि ] कचनार । कामायनी, पृ० १७०। गडाली-दामी० [सं० गण्डाली] गंड दूर्वा । गांडर घास । गंता--संक्षा पुं० [सं० गन्ती [श्री. गंत्री] जानेवाला । १.७०-प्रधट गंडासा!-संया पुं० [हिं०] दे० 'गेंडासा'। . घटना सुघट विषट विघटन विधट भूमि पाताल जल गगन गंडि-संघात्री० [सं० पण्डि] १. पेड़ का स्कंध । तना। २. घला। नंता । तुलसी (शब्द०)। -घेवा को०] । विशेप-इसका प्रयोग विशेष करके समस्त पद के अंत में होता मंडिका-संज्ञा श्री०सं० गण्डिका] १. एक प्रकार का छोटा पत्थर है। जैसे-अनगंता । - २. एक प्रकार का पैच। ३. वह वस्तु जो पहली अवस्या गंत-वि० [सं० गन्तु] १. जानेवाला! चलनेवाला । २. पथिक । पार कर दूसरी अवस्था में पहुंच गई हो। ४. गड़े के चमड़े कई वटोही [को०] । की बनी हुई एक प्रकार की छोटी नाव । गंतु-संज्ञा पुं० पथ । मान को०] । गडिनी-संझा ली सिं० गण्डिनी] दुर्गा । गंत्रिका-संघा स्त्री॰ [सं० गन्त्रिका] छोटी गाड़ी [को०) । गंडीर-संज्ञा पुं० [सं० गण्डीर] १. एक नाग जिसे गिड़नी भी कहते गंत्री-संज्ञा स्त्री० [सं० गन्त्री] गाड़ी जिसमें घोड़े या बैल जुते हों। ... हैं। वैद्यक मैं यह कफनाशक माना जाता है। २. पोई का यो०-गंत्रीरय।। साग। ३.सेहंड ४..धनप । ..उ०-कुंजर बीटी के पगि गंद-संवा श्री० [फा०1१. मलिनता । मलापन । २.अपवित्रता । बांधा। गहि गंडीर उलटि सरु सांधा ।-प्राग०, पृ० १३६ दुर्गध। बदबू । ४.दोप। खराबी। ५. अशृद्धि । ६. ५. गन्ना या कब की छोटी टुकड़ी। नॅडेरी। उ०--कोलू गेंदलापन । मटमैलापन । वित्र गंडीर ज्यों एह जन एवं होय !--प्राण, पृ० २४८ । मुहा०—द बकना गंदी बातें कहना या गालियाँ बकना । . .५. योद्धा । वीर [को॰] । यौ---गंदवहन- (१) जिसके मुह से दुर्गध आती हो। (२) - गंडीरी-संद्धा मी० [सं० गण्डीरी] ३० 'गंडीर'। दुर्भापी । गालियाँ बकनेवाला। गंददहनीमुह से कुवास या गंड--संधा पुं० [सं० १.ण्ड] १. ग्रंथि । गां। २. अस्थि । हड्डी । ३. दुर्गध आने का रोग। गंदवगल - जिसके बगल से दुर्गध पाती . मेंढक 1 तकिया कि० । हो । गंदवगली काँख या बगल से दुर्गध पाने का रोग। ...गंदुरू@-संशा पुं० [सं० गण्डूष] दे० ' गंडूप'। गंदगी'-संज्ञा स्त्री॰ [फा०] १.मैलापन । मलिनता। २. अपवित्रता । गहुपद-संज्ञा पुं० [सं०] पील पांव रोग । अशुद्धता । नापाकी। - गंडू-संझा धी० [सं० गण्डू] १. तेल । २. दे० 'गंडु' [को०] । क्रि० प्र०--करना।-फैलना ।—फैलाना ।—होना । गंटू-वि० [हिं० गाड] दे० 'गांडू'। ३. मैला । गलौज । मल । ... गंदूक-संक्षा पुं० [स० गण्डूप] दे० 'गंडूप' । गंदगी-संक्षा स्त्री० [सं० गन्ध] दुगंध । बदबू । • गंडूपद-पंया पुं० [सं०] केंचुआ। . यौल-गंडूपदभव । गंदना--संज्ञा पुं० [सं० गन्धन या फा०] १. लहसुन या प्याज की तरह का एक मसाला जो तरकारी आदि में डाला जाता है। ..गंडूपदभव-संश पुं० [सं०] सीसा नामक धातु । (डि०)। २.एक घास जो लहसुन की गाँठ में जो डालकर वोने से . . विशेष-संभव है, प्रात्रीनों का यह विश्वास रहा हो कि उत्पन्न होती है। यह चटनी आदि के लिये काम पाती है। .. केंचुएँ से 'सीसा' निकलता है, जैसे, अबतक बहुत से लोगों इसे दंदना भी कहते हैं। की धारणा है कि मोर के पंख से ताँवा निकलता है। गंडूल- विसंगण्डल] गाँठोबाला । गांठदार । २. टेड़ा । वक्रा गंदम-संहा पुं० [देश॰] [f गंदमी] एक पक्षी। • झुका हुआ (को०)। विशेप- यह सात प्रा० इंच लंवा होता है और ऋतु के अनुसार