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आड़ में धोखा देने का अवसर न मिले, जैसे, मोहन उर्फ बिहारी,इत्यादि ।

कुछ संज्ञाएँ व्यक्ति-वाचक होने पर भी अर्थवान हैं, जैसे, ईश्वर, परमात्मा, ब्रह्मांड, परब्रह्म, प्रकृति, इत्यादि ।

१०२---जिस संज्ञा से संपूर्ण पदार्थो वा उनके समूहों का बोध होता है उसे जातिवाचक संज्ञा कहते हैं, जैसे, मनुष्य, घर, पहाड़, नदी, सभा, इत्यादि ।

हिमालय, विंध्याचल, नीलगिरि और आबू एक दूसरे से भिन्न हैं, क्योंकि वे अलग अलग व्यक्ति है, परंतु वे एक मुख्य धर्म में समान हैं, अर्थात् वे धरती के बहुत ऊँचे भाग हैं। इस साधर्म्य के कारण उनकी गिनती एक ही जाति में होती है और इस जाति का नाम ‘पहाड़' है। हिमालय, विंध्याचल, नीलगिरि, आबू और इस जाति के दूसरे सब व्यक्तियों के लिये ‘पहाड़' नाम आता है। ‘हिमालय' कहने से ( इस नाम के ) केवल एक ही पहाड़ का बोध होता है, पर ‘पहाड़' कहने से हिमालय, नीलगिरि, विंध्याचल,आबू और इस जाति के दूसरे सब पदार्थ सूचित होते हैं। इसलिए ‘पहाड़' जातिवाचक संज्ञा है। इसी प्रकार गंगा, यमुना, सिंधु, ब्रह्मपुत्र और इस जाति के दूसरे सब व्यक्तियों के लिए 'नदी' नाम का प्रयोग किया जाता है, इसलिए ‘नदी' शब्द जातिवाचक संज्ञा है। लोगों के समूह का नाम ‘सभा' है। ऐसे समूह कई हैं; जैसे, ‘नागरी-प्रचारिणी’, ‘कान्यकुब्ज’, ‘महाजन’, ‘हितकारिणी', इत्यादि । इन सब समूहों को सूचित करने के लिए 'सभा' शब्द का प्रयोग होता है, इसलिये ‘सभा' जातिवाचक संज्ञा है ।

जातिवाचक संज्ञाएँ अर्थवान् होती हैं। यदि हम किसी स्थान का नाम ‘प्रयाग’ के बदले 'इलाहाबाद' रख दे तो लोग उसे इसी नाम से पुकारने लगेंगे, परंतु यदि हम ‘शहर' को 'नदी' कहें तो