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और क्रिया-विशेषण, संबंध-सूचक, समुच्चय-बोधक और विस्मयादि-बोधक अविकारी शब्द वा अव्यय हैं।

[ टी०--हिदी के अधिकांश व्याकरणो में संस्कृत की चाल पर शब्दों के तीन भेद माने गये हैं-( १ ) संज्ञा, ( २ ) क्रिया, (३) अव्यय । संस्कृत में प्रातिपदिक्क , धातु और अव्यय के नाम से शब्दों के तीन भेद माने गये हैं; और ये भेद शब्दों के रूपांतर के आधार पर किये गये हैं। व्याकरण में मुख्यतः रूपांतर ही, का, विचार किया जाता है; परंतु जहां शब्दों के केवल

रूपों से उनका परस्पर संबंध प्रकट नहीं होता वहाँ उनके प्रयोग वा अर्थ का भी विचार किया जाता हैं । संस्कृत रूपातर-शील भाषा है; इसलिए उसमें शब्दों का प्रयोग वा अर्थ बहुधा उनके रूप ही से जाना जाता है । यही कारण है जो संस्कृत में शब्दों के उतने भेद नहीं माने गये जितने अंगरेजी में और उसके अनुसार हिंदी, मराठी, गुजराती, आदि भाषाओं में माने जाते है । हिदी में शब्द के रूप से उसका अर्थ वा प्रयोग सदा प्रकट नहीं होता; क्योंकि वह सस्कृत के समान पूर्णतया रूपांतर-शील भाषा नहीं है। हिदी में कभी कभी बिना रूपांतर के, एक ही शब्द का प्रयोग भिन्न भिन्न शब्द-भेदों में होता है; जैसे, वे लड़के साथ खेलते हैं। ( क्रिया-विशेषण) । लड़का बाप के साथ गया । ( संबंध-सूचक )। विपत्ति में कोई साथ नहीं देता । ( संज्ञा )। इन उदाहरणों से जान पड़ता है कि हिंदी में संस्कृत के समान केवल रूप के आधार पर शब्द-भेद मानने से उनका ठीक ठीक निर्णय नहीं हो सकता है। हिदी के कोई कोई वैयाकरण शब्दों के केवल पांच भेद मानते है--संज्ञा, सर्वनाम, विशेषण, क्रिया और अव्यय । वे लोग अव्यय के भेद नहीं मानते और उनमें भी विस्मयादि-बोधक को शामिल नहीं करते। जो लोग शब्दों के केवल तीन भेद ( संज्ञा, क्रिया और अव्यय ) मानते हैं उनमें से कोई कोई भेदों के उपभेद मानकर शव्द-भेदों की संख्या तीन से अधिक कर देते हैं। किसी किसी के मन में उपसर्ग और प्रत्यय भी शब्द हैं और वे इनकी गणना अव्ययों में करते है। इस प्रकार शब्द-भेदों की संख्या में बहुत मत-भेद है।

अँगरेजी में भी ( जिसके अनुसार हिदी में आठ शब्द-भेद मानने की ___________________________________________

  • विभक्ति ( प्रत्यय) लगने के पूर्व संज्ञा, सर्वनाम वा विशेषण को

मूल-रूप ।