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दूसरा भाग।

शब्द-साधन।

पहला परिच्छेद

शब्द-भेद।

पहला अध्याय

शब्द-विचार।

८६—शब्द-साधन व्याकरण के उस विभाग को कहते हैं। जिसमें शब्दों के भेद (तथा उनके प्रयोग) रूपांतर और व्युत्पत्ति का निरूपण किया जाता है।

८७—एक या अधिक अक्षरों से बनी हुई स्वतंत्र सार्थक ध्वनि को शब्द कहते हैं, जैसे, लड़का, जा, छोटा, मैं, धीरे, परंतु, इत्यादि।

(अ) शब्द अक्षरों से बनते हैं। 'न' और 'थ' के मेल से 'नथ' और 'थन' शब्द बनते हैं, और यदि इनमें 'आ' का योग कर दिया जाय तो 'नाथ', 'थान', 'नथा', 'थाना', आदि शब्द बन जायँगे।

(आ) सृष्टि के संपूर्ण प्राणियों, पदार्थों, धर्मों, और उनके सब प्रकार के संबंधों को व्यक्त करने के लिए शब्दों का उपयोग होता है। एक शब्द से (एक समय में) प्रायः, एक ही भावना प्रकट होती है, इसलिए कोई भी पूर्ण विचार प्रकट करने के लिए एक से अधिक शब्दों का काम पड़ता है। 'आज तुझे क्या सूझी है?'—