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७१–त् वा द् के आगे श हो तो त् चा द् के बदले च् और श के बदले छ होता है, और न वा द् के आगे ह हो तो त् वा द् के स्थान मे द् और ह के स्थान में घ होता है; जैसे---

सत् + शास्त्र =सच्छास्त्र, उत् + हार= उद्धार ।

७२—छ के पूर्व स्वर हो तो छ के बदले च्छ होता है; जैसे-

अ +छादन =आच्छादन, परि+छेद = परिच्छेद ।

७३–म् के आगे स्पर्श-वर्ण हो तो म् के बदले विकल्प से अनुस्वार अथवा उसी वर्ग का अनुनासिक वर्ण आता है, जैसे-

सम् + कल्प= सकल्प वा सङ्कल्प ।

किम् + चित् =किंचित् वा किञ्चित् ।

सन् +तोष = संतोष वा सन्तोष ।।

सम् + पूर्ण =संपूर्ण वा सम्पूर्ण ।

७४-म् के आगे अंतस्थ वा ऊष्म वर्ण हो तो म् अनुस्वार में बदल जाती है, जैसे-

किम् + वा=किवा, सम् + हार =संहार !

सम्+योग= संयोग , सम् + वाद = संवाद ।

अपवाद सम् + राज= सम्राज

७५-ऋ, र वा ष के आगे न हो और इनके बीच मैं चाहे कोई स्वर, कवर्ग, पवर्ग, अनुस्वार य, व, ह आवे तो न का ण हो जाता है, जैसे-

भर् + अन = भरण, भूप् +अन= भूषण ।

प्र+मान = प्रमाण, राम+अयन = रामायण ।

तृष् + ना = तृष्णा ; ऋ+न= ऋण ।

७६–यदि किसी शब्द के आद्य स के पूर्व अ, आ को छोड़ कोई स्वर आवे तो स के स्थान में ष होता है, जैसे- .. :

अभि + सेक= अभिषेक, नि + सिद्ध =निषिद्ध।