पृष्ठ:हिंदी व्याकरण.pdf/७३

यह पृष्ठ जाँच लिया गया है।
(५२)

भाषा में पदसिद्धि, समास और वाक्यों में संधि का प्रयोजन पड़ता है, परंतु हिंदी में संधि के नियमों से मिले हुए संस्कृत के जो समासिक शब्द आते हैं, केवल उन्हीं के संबंध से इस विषय के निरूपण की आवश्यकता होती है।]

६०—संधि तीन प्रकार की है—(१) स्वर-संधि (२) व्यंजन-संधि और (३) विसर्ग-संधि।

(१) दो स्वरों के पास पास आने से जो संधि होती है उसे स्वर-संधि कहते हैं; जैसे, राम+अवतार=राम्+अ+अ+वतार=राम्+आ+वतार=रामावतार।

(२) जिन दो वर्णों में संधि होती है उनमें से पहला वर्ण व्यंजन हो और दूसरा वर्ण चाहे स्वर हो चाहे व्यंजन, तो उनकी संधि को व्यंजन-संधि कहते हैं; जैसे, जगत्+ईश=जगदीश, जगत्+नाथ=जगन्नाथ।

(३) विसर्ग के साथ स्वर वा व्यंजन की संधि को विसर्ग संधि कहते हैं; जैसे, तपः+वन=तपोवन, निः+अंतर=निरंतर।

स्वर-संधि।

६१—यदि दो सवर्ण (सजातीय) स्वर पास पास आवे तो दोनों के बदले सवर्ण दीर्घ स्वर होता है; जैसे—

(क) अ और आ की संधि—

अ+अ=आ—कल्प+अंत=कल्पांत; परम+अर्थ=परमार्थ।
अ+आ=आ—रत्न+आकर=रत्नाकर; कुश+आसन=कुशासन।

आ+अ=आ—रेखा+अंश-रेखांश, विद्या+अभ्यास=विद्याभ्यास।

आ+आ=आ–महा+आशय=महाशय; वार्त्ता+आलाप=वार्त्तालाप।