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(९) तुल्यता-सूचक =
(१०) स्थान पूरक … … …
(११) समाप्ति-सूचक —०—

(१) वर्गाकार कोष्ठक।

७४६—यह चिह्न भूल सुधारने और त्रुटि की पूर्ति करने के लिए व्यवहृत होता है; जैसे, अनुवादित [अनूदित] ग्रंथ, वृ [व्र] ज-मोहन, कुटी [र]।

(क) कभी-कभी इसका उपयोग दूसरे कोष्ठकों के घेरने में होता है, जैसे, अंक [४ (क)] देखो। दरखास्तें [नमूना (क)] के मुताबिक हो सकती हैं।

(ख) अन्यान्य कोष्ठकों के रहते भिन्नता के लिए; जैसे—

(१) मातृ-मूर्ति—(कविता) [लेखक, बाबू मैथिलीशरण गुप्त]।

(२) सर्पाकार कोष्ठक।

७४७—इसका उपयोग एक वाक्य के ऐसे शब्दों को मिलाने में होता है जो अलग पंक्तियों में लिखे जाते हैं और जिन सबका संबंध किसी एक साधारण पद से होता है, जैसे—

आर्द्रपन
आर्द्रभाव
=गीलापन, चंद्रशेखर मिश्र
शिक्षक, राजस्कूल दरभंगा
(बिहार और उड़ीसा)

(३) रेखा।

७४८—जिन शब्दों पर विशेष अवधारण देने की आवश्यकता होती है उनके नीचे बहुधा रेखा कर देते हैं, जैसे, जो रुपया लड़ाई के कर्जे में जमा किया जायेगा उसमें का हर एक रुपया यानी वह सबका सब मुल्क हिंद में खर्च किया जायेगा। आप कुछ न कुछ रुपया बचा सकते हैं, चाहे वह थोड़ा ही हो और एक रुपये से भी कुछ न कुछ काम चलता है।

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