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(ख) जिन वाक्यों में प्रश्नवाचक शब्दों का अर्थ संबंधवाचक शब्दों का सा होता है, उनमें प्रश्न-चिह्न नहीं लगाया जाता; जैसे, अपने क्या कहा, सो मैंने नहीं सुना। वह नहीं जानता कि मैं क्या चाहता हूँ।।

(५) आश्चर्य-चिह्न।

७४१―यह चिह्न विस्मयादिबोधक अव्ययों और मनोविकार-सूचक शब्दो, वाक्यांशों तथा वाक्यों के अन्त में लगाया जाता है; जैसे, वाह! उसने तो तुम्हें अच्छा धोखा दिया! राम-राम! उस लड़के ने दीन पक्षी को मार डाला!

(क) तीव्र मनोविकार-सूचक संबोधन-पदों के अंत में भी आश्चर्य-चिह्न आता है; जैसे, निश्चय दया-दृष्टि से माधव! मेरी। ओर निहारोगे।

(ख) मनोविकार सूचित करने में यदि प्रश्नवाचक शब्द आवे तो भी आश्चर्य-चिह्न लगाया जाता है; जैसे, क्योंरी! क्या तू आँखों से अन्धी है।

(ग) बढ़ता हुआ मनोविकार सूचित करने के लिए दो अथवा तीन आश्चर्य-चिह्नों का प्रयोग किया जाता है; जैसे, शोक! शेाक!! महाशेाक !!!

[सू०-वाक्य के अंत में प्रश्न वा आश्चर्य का चिह्न आने पर पूर्ण-विराम नहीं लगाया जाता है।]

(६) निर्देशक (डैश)।

७४२―इस चिह्न का प्रयोग नीचे लिखे स्थानों में होता है―

(क) समानाधिकरण शब्दों, वाक्यांशों अथवा वाक्यों के बीच में; जैसे, दुनिया में नयापन―नूतनत्व―ऐसी चीज नहीं जो गली- गली मारी-मारी फिरती हो। जहाँ इन बातों से उसका संबंध न रहे―