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(ण) जब छेाटे समानाधिकरण प्रधान वाक्यों के बीच में समुच्चय-बोधक नहीं रहता, तब उनके बीच में; जैसे, पानी बरसा, हवा चली, ओले गिरे। सूरज निकला, हुआ सवेरा, पक्षी शोर मचाते हैं।

(२) अर्द्ध-विराम।

७३८―अर्द्ध-विराम नीचे लिखी अवस्थाओं में प्रयुक्त हेाता है―

(क) जब संयुक्त वाक्यों के प्रधान वाक्यों से परस्पर विशेष संबंध नहीं रहता, तब वे अर्द्ध-विराम के द्वारा अलग किये जाते हैं; जैसे, नंदगाँव का पहाड़ कटवाकर उन्होंने विरक्त माधुओं को क्षुब्ध किया था; पर लोगो की प्रार्थना पर सरकार ने इस घटना के सीमाबद्ध कर दिया।

(ख) उन पूरे वाक्यों के बीच में जो विकल्प से अंतिग समुच्चय-बोधक के द्वारा जोड़े जाते हैं; जैसे, सूर्य का अस्त हुआ; आकाश लाल हुआ; बराह पोखरो से उठकर घूमने लगे; मोर अपने रहने के झाड़ों पर जा बैठे। हरिण हरियाली पर सोने लगे; पक्षी गाते-गाते घोसलों की ओर बढे; और जंगल में धीरे-धीरे अँधेरा फैलने लगा।

(ग) जब मुख्य वाक्य से कारणवाचक क्रियाविशेष का निकट संबंध नहीं रहना; जैसे, हवा के दबाव में साबुन का एक बुलबुल भी नहीं दब सकता; क्योंकि बाहरी हवा का दबाव भीतरी हवा के दबाव से कट जाता है।

(घ) किसी नियम के पश्चात् आनेवाले उदाहरण- सूवक ‘जैसे' शब्द के पूर्व।

(ङ) उन कई आश्रित वाक्यों के बीच मे, जो एकही मुख्य वाक्य पर अवलम्बित रहते है; जैसे, जब तक हमारे देश के पढ़े-लिखे लोग यह न जानने लगेंगे कि देश मे क्या क्या हो रहा हैं;