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(क) अन्य जातियों के प्राचीन इतिहास में विचार-स्वातंत्र्य के कारण अनेक महात्मा पुरुष सूली पर चढाये गये। (मुल्य उपवाक्य ख, ग का समानाधिकरण)

(ख) या (अन्य जातियों के प्राचीन इतिहास में विचार स्वातंत्र्य के कारण अनेक महात्मा पुरुष) इग में जलाये गये। (मुख्य उपवाक्य ग का समानाधिकरण, क का विभाजक)

[सू०―इस वाक्य में विधेय-विस्तारक और उद्देश्य का संकोच किया गया है।]

(ग) परन्तु यह आर्य जाति ही का गौरवान्वित इतिहास है। (मुख्य उपवाक्य घ का, क, ख का विरोध-दर्शक)

(घ) जिसमें स्वतंत्र विचार प्रकट करनेवाले पुरुषो के अवतार और सिद्ध पुरुष मानने में जरा भी आनाकानी नहीं की गई। ( विशेषण उपवाक्य ग का)

[सू०―इस वाक्य के विधेय-विस्तारक में सकर्मक क्रियार्थक संज्ञा की पूर्त्ति संयुक्त है, पर इसके कारण, वाक्य के स्पष्टीकरण में विधेय-विस्तारक को दुहराने की आवश्यकता नहीं हैं, क्योंकि पूर्ति के दोनो शब्द से एक ही भावना सुचित होती है। यदि विधेय-विस्तारक को दुहराने, तोभी उससे दो वाक्य नहीं बनाये जा सकते, क्योकि वह वाक्य का मुख्य अवयव नहीं है।]

(छ) चाहे उनके विचार लोकमत के कितने ही प्रतिकूल क्यों न हों। [क्रिया-विशेषण-उपवाक्य, (घ) का विरोध०]


छठा अध्याय।

संक्षिप्त वाक्य।

७३०―बहुधा वाक्यों में ऐसे शब्द जो उसके अर्थ पर से सहज ही समझ में आ सकते हैं, संक्षेप और गौरव लाने के विचार से