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(५) सुना है, इस बार दैत्यों में भी बड़ा उत्साह फैल रहा है। (मिश्र वाक्य)
(क) सुना है। (मुख्य उपवाक्य)
(ख) इस बार दैत्यों में भी बड़ा उत्साह फैल रहा है। [संज्ञा-उपवाक्य, (क) का कर्म]
वाक्य | प्रकार | साधारण उद्देश्य | उद्देश्य-वर्द्धक | साधारण विधेय | कर्म | पूर्त्ति | विधेय-विस्तारक | सं॰ श॰ |
(क) | मुख्य उपवाक्य | मैंने (लुप्त) | … | सुना है | (ख) वाक्य | … | … | … |
(ख) | संज्ञा-उपवाक्य, (क) का कर्म | उत्साह | बड़ा | फैल रहा है | … | … | इस बार; दैत्यों में, भी | … |
(६) जैसे कोई किसी चीज को मोम से चिपकाता है, उसी तरह तूने अपने भुलाने को प्रशंसा पाने की इच्छा से यह फल इस पेड़ पर लगा लिये थे। (मिश्र वाक्य)
(क) उसी तरह तूने अपने भुलाने को प्रशंसा पाने की इच्छा से यह फल इस पेड़ पर लगा लिये थे। (मुख्य उपवाक्य)
(ख) जैसे कोई किसी चीज को मोम से चिपकाता है। [विशेषण-उपवाक्य, (क) का; यहाँ जैसे=जिस तरह]।
वाक्य | प्रकार | साधारण उद्देश्य | उद्देश्य-वर्द्धक | साधा॰ विधेय | कर्म | पूर्त्ति | विधेय-विस्तारक | सं॰ श॰ |
(क) | मुख्य उपवाक्य | तूने | … | लगा लिये थे | यह फल | … | अपने भुलाने को, प्रशंसा पाने की इच्छा से; इस पेड़ पर;, उसी तरह | … |
(ख) | विशेषण उपवाक्य, (क) का | कोई | … | चिपकाता है | किसी चीज को | … | मोम से, जैसे | … |