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(३) वेग चली आ जिससे सब एक-संग क्षेम-कुशल से कुटी में पहुँचें। (मिश्र वाक्य)
(क) वेग चली आ। (मुख्य उपवाक्य)
(ख) जिससे सब एक-संग क्षेम-कुशल से कुटी में पहुँचें। [क्रियाविशेषण-उपवाक्य, (क) का।]
वाक्य | प्रकार | साधारण उद्देश्य | उद्देश्य-वर्द्धक | साधारण विधेय | कर्म | पूर्त्ति | विधेय-विस्तारक | सं॰ श॰ |
(क) | मुख्य उपवाक्य | तू (लुप्त) | … | चली आ | … | … | वेग | … |
(ख) | क्रिया-विशेषण-उपवाक्य, (क) का कार्य | सब | … | पहुँचें | … | … | एक-संग, क्षेम-कुशल से; कुटी में | जिससे |
(४) जो आदमी जिस समाज का है उसके व्यवहारों का कुछ न कुछ असर उसके द्वारा समाज पर जरूर ही पड़ता है। (मिश्र वाक्य)
(क) उसके व्यवहारों का कुछ न कुछ असर उसके द्वारा समाज पर जरूर ही पड़ता है। (मुख्य उपवाक्य)
(ख) जो आदमी जिस समाज का है। [विशेषण-उपवाक्य, (क) का]
वाक्य | प्रकार | साधा॰ उद्देश्य | उद्देश्य-वर्द्धक | साधा॰ विधेय | कर्म | पूर्त्ति | विधेय-विस्तारक | सं॰ श॰ |
(क) | मुख्य उपवाक्य | आदमी | जो | है | … | जिस समाज का | … | … |
(ख) | विशेषण-उपवाक्य, (क) का | असर | उसके व्यवहारों का, कुछ न कुछ | पड़ता है | … | … | उसके द्वारा, समाज पर, जरूर ही | … |