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आते हैं। ऐसी अवस्थाओं में आश्रित उपवाक्यों को विशेषण-उपवाक्य मानना उचित है, क्योकि यद्यपि ये वाक्यांश क्रिया-विशेषणों के पर्यायी हैं तथापि इनमें संज्ञा की प्रधानता रहती है (अ०-७०५); जैसे, जिस काल श्रीकृष्ण हस्तिपुर को चलें, उस समय की शेाभी कुछ बरनी नहीं जाती। जिस जगह से वह आता हैं उसी जगह लौट जाता है। जिस प्रकार तहग्वानों का पता नही चलता, उसी प्रकार मनुष्य के मन का रहस्य नहीं मालूम होता।

(५) कार्य-कारणवाचक क्रियाविशेषण-उपवाक्य।

७१७―कार्य-कारणवाचक क्रियाविशेषण-उपवाक्यों से नीचे लिखे अर्थ पाये जाते हैं―

(१) हेतु वा कारण―हम उन्हें सुख देंगे, “क्योंकि उन्होंने हमारे लिए बड़ा दुख सहा है”। वह इसलिए नहाता है “कि ग्रहण लगा है”।

(२) संकेत―“जो यह प्रसंग चलता” तो मैं भी सुनता। “यदि उनके मत के विरुद्ध कोई कुछ कहता है” तो वे उस तरफ़ बहुत कम ध्यान देते हैं।

(३) विरोध―“यद्यपि इस समय मेरी चेतना-शक्ति मूर्छित सी हो रही है,” तो भी वह दृश्य आँखों के सामने घूम रहा है। सब काम वे अकेले नहीं कर सकते, ‘चाहे वे कैसे ही होशियार क्यों न हो।”

(४) कार्य का निमित्त―इस बात की चर्चा हमने इसलिए की है “कि उसकी शंका दूर हो जावे।” “तपोवन-वासियों के कार्य में विघ्न न हो,” इसलिए रथ को यहीं रखिये।

(५) परिणाम वा फल―इन नदियों का पानी इतना ऊँचा, पहुँच जाता है “कि बड़े-बड़े पूर आ जाते हैं। मुझे मरना नहीं “जो मैं तेरा पक्ष करूँ”।