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के बदले निश्चयवाचक सर्वनाम भी लाते है, अँगरेजी के संबंध-वाचक सर्वनाम की इसी प्रकार की रचना के अनुकरण का फल जान पड़ता है। यह रचना हिंदी में आजकल बढ़ रही है; परतु पिछले निश्चयवाचक सर्वनाम का उपयोग क्वचित् होता है जैसे, सर्वदर्शी सर्वशक्तिमान् जगदीश्वर का, जो घट घट का अंतर्यामी है, आपके मन में कुछ भी भय उत्पन्न न हुआ (गुटका०)। जबूद्वीप नाम का प्रदीप, जो दीपक-समान मान के पाता है, प्रसिद्ध क्षेत्र हैं (श्यामा०)। कहीं-कहीं नदी की तली मोटी रेत से, जिसमें बहुधा बारीक रेत भी मिली होती है, ढँकी रहती है।]

(च) कभी-कभी विशेषण-उपवाक्य विशेषण के समान मुख्य उपवाक्य की सज्ञा का अर्थ मर्यादित नहीं करता, किंतु उसके विषय में कुछ अधिक सूचना देता है, जैसे, उसने एक नेवला पाला था, जिस पर उसका बड़ा प्रेम था। इस वाक्य का यह अर्थ नहीं है कि उसने वही नेवला पाला था, जिस पर उसका वडा प्रेम था, किंतु इसका अर्थ यह है कि उसने एक (कोई) नेवला पाला था और उस पर उसका प्रेम हो गया। इसी प्रकार इस (अगले) वाक्य मे विशेषण-उपवाक्य मर्यादक नहीं, किंतु समानाधिकरण है―इन कवियों की आमोद-प्रियता और अपव्यय की अनेक कथाएँ सुनी जाती हैं जिनका उल्लेख यहाँ अनावश्यक है (सर०)। इस अर्थ के विशेषण-उपवाक्य बहुधा मुख्य उपवाक्य के पश्चात् आते हैं और उनके सबंध-वाचक सर्वनाम के बदले विकल्प से “और” के


प्रेमसागर में भी ऐसी रचना पाई जाती है जिससे प्रकट होता है कि या तो यह रचना हिंदी में बहुत पुरानी है और अंगरेजी रचना से इसका कोई सबंध नहीं है, किंतु फारसी रचना से है, (संस्कृत में ऐसी रचना नहीं हैं।) या लल्लू जीलाल पर भी अँग्रेजी का प्रभाव पड़ा है। प्रेमसागर का उदाहरण यह है―यह पाप―रूप, काल-आवरण, डरावनी-मूरत, जो आपके सम्मुग्ध खड़ा है, सो पाप है। प्राचीन कविता में इस रचना के उदाहरण नहीं मिलते।