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(घ) कभी-कभी संबंधवाचक सर्वनाम के स्थान में प्रश्नवाचक सर्वनाम आता है; परंतु नित्य-संबंधी सर्वनाम नियमानुसार रहता है, जैसे, अब शिक्षण क्या है सो हम तुम्हें बताते हैं। फिर आगे क्या हुआ से किसी को न जान पड़ा।

[सू०―पहले (७०३-ङ में) कहा गया है कि संज्ञा-उपवाक्य प्रश्नवाचक होते है; इसलिए प्रश्नवाचक संज्ञा-उपवाक्य और प्रश्नवाचक विशेषण-उपवाक्य का अतर समझना आवश्यक है। जब पहले प्रकार के उपवाक्य मुख्य उपवाक्य के पश्चात् आते है, तब उनकी पहचान में विशेष कठिनाई नहीं पडती, क्येांकि एक तो वे बहुधा ‘कि’ समुच्चय-बोधक से आरंभ होते है, और दूसरे, वे मुख्य उप-वाक्य के किसी लुप्त वा प्रकट शब्द के समानाधिकरण होते है जैसे, मैं जानता हूँ कि तुम क्या कहनेवाले हो। इस मिश्र वाक्य में जो आश्रित उप-वाक्य है वह मुख्य उपवाक्य के ‘यह’ (लुप्त) शब्द कि समानाधिकरण है और संज्ञा-उपवाक्य है। अब-यदि हम इस उपवाक्य को मुख्य उपवाक्य के पूर्व रखकर इस तरह कहे कि “तुम क्या कहनेवाले हों, यह मैं जानता हूँ,” तो यह उपवाक्य भी संज्ञा-उपवाक्य है, क्योंकि यह सुख्य उपवाक्य के यह शब्द का समानाधिकरण है। यथार्थ में ‘यह’ शब्द प्रश्नवाचक संज्ञा-उपवाक्यों के संबंध से मुख्य उपवाक्य में सदैव आता है अथवा समझा जाता है। पर प्रश्नवाचक विशेषण-वाक्येां के साथ मुख्य वाक्य में बहुधा नित्य-संबंधी ‘सो’ अथवा ‘वह’ रहता है और उसका संबंध पूरे वाक्य से न रहकर केवल उसी शब्द सें रहता है जिसके साथ प्रश्नवाचक वा सबंध-वाचक सर्वनाम आता है; जैसे, फिर उसकी क्या दशा हुई सो (वह) मै नहीं जानता। इस वाक्य में ‘सो’ अथवा ‘वह’ का संबंध आश्रित उपवाक्य की ‘दशा’ संज्ञा से है और यह आश्रित उपवाक्य विशेषण-उपवाक्य है।]

(ङ) कभी-कभी मुख्य उपवाक्य मे संज्ञा और उसका सर्वनाम, सोनों आते हैं; जैसे, पानी जो बादलों से बरसता है, वह मीठा रहता है; पहला कमरा जहाँ मैं गया, उसमें अंधे सिपाहियों को मर्दन अथवा, मालिश करने का काम सिखलाया जाता है (सर०)।

[सू०―इस प्रकार की रचना, जिसमें पहले संज्ञा का उपयोग करके पश्चात् उसका सबंधवाचक सर्वनाम रखते है और फिर कभी-कभी उस संज्ञा