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(झ) संबंध-सूचकांत शब्द――चिड़िया धोती समेत उड़ गई। वह भूख के मारे मर गया। मैं उनके यहाँ रहता हूँ। अँगरेजों ने कर्म नाशा तक उसका पीछा किया। मरने के सिवा और क्या होगा? यह काम तुम्हारी सहायता बिना न होगा।

(ञ) कर्त्ता, कर्म और संबंध-कारको का छोड़ शेष कारक― मैंने चाकू से फल काटा। वह नहाने को गया है। वृक्ष से फल गिरा। मैं अपने किये पर पछताता हूँ।

[सू०―(१) संबोधन-कारक बहुधा वाक्य से कोई संबंध नहीं रखता, इसलिए वाक्य-पृथक्करण में उसका कोई स्थान नहीं है।

(२) एक वाक्य भी विधेय-वर्द्धक हो सकता है, परंतु उसके योग से पूरा वाक्य मिश्र हो जाता है (अं०-७०६)।]

६९५―एक से अधिक विधेय-वर्द्धक एक ही साथ उपयोग में आ सकते हैं, जैसे, इसके बाद, उसने तुरन्त घर के स्वामी से कहकर, लड़के को पढ़ने के लिए, मदरसे को भेजा। मैं अपना काम पूरा करके, बाहिर के कमरे में, अखबार पढ़ता हुआ वैठा था।

६९६―अर्थ के अनुसार विधेय-वर्द्धक के नीचे लिखे भेद हेाते हैं―

(१) कालवाचक―

(अ) निश्चित काल―मैं कल आया। बच्चा पैदा होते ही दूध पीने लगता है। आपके जाने के बाद नौकर आया। गाड़ी पाँच बजे जायगी।

(इ) अवधि―वह दो महीने बीमार रहा। हम दिन-भर काम करते हैं। क्या तुम मेरे आने तक न ठहरोगे? मेरे रहते यह काम हो जायगा।

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