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रहे—मूल क्रिया, अकर्मक, कर्तृवाच्य, निश्चयार्थ, सामान्य भूतकाल, अन्यपुरुष, पुँल्लिंग, आदरार्थ बहुवचन, इसका कर्त्ता 'वे' (लुप्त), कर्त्तरिप्रयोग।

(ख) कठिन वाक्य-रचना के शब्द।

[ सू॰—इन शब्दों के उदाहरणों में प्रत्येक शब्द का पद-परिचय न देकर केवल मुख्य-मुख्य शब्दों की व्याख्या दी जायगी । किसी-किसी शब्द की व्याख्या में केवल मुख्य बातें ही कही जावेंगी।]

(१) सिंह दिन को सोता है।

दिन को—अधिकरण के अर्थ में सप्रत्यय कर्मकारक। (दिन को=दिन में। अं॰—५२५)

(२) मुझे वहाॅ जाना था

मुझे—रूढ़ पुरुषवाचक सर्वनाम, वक्ता के नाम की ओर संकेत करता है, उत्तमपुरुष, उभयलिग, एकवचन, कर्त्ता के अर्थ में संप्रदान-कारक, 'जाना था' क्रिया से संबंध।

जाना था—संयुक्त क्रिया, आवश्यकताबोधक, अकर्मक, कर्तृ-वाच्य, निश्चयार्थ, सामान्य भूतकाल, अन्यपुरुष, पुँल्लिंग, एकवचन, कर्त्ता 'मुझे', भावेप्रयोग।

[सू॰—किसी-किसी का मत है कि इस प्रकार के वाक्यों में क्रियार्थक संज्ञा 'जाना' कर्त्ता है और उसका अन्वय इकहरी क्रिया "था" से है। इस मत के अनुसार प्रस्तुत वाक्य का यह अर्थ होगा कि मेरा वहाँ जाने का व्यवहार था जो अब नहीं है। इस अर्थ-भेद के कारण "जाना था" को संयुक्त क्रिया ही मानना ठीक है।]

(३) संवत् १९५७ वि॰ मे बड़ी अकाल पड़ा था।

संवत्—अधिकरण-कारक।

१९५७—कर्मधारय-समास, क्रम-संख्यावाचक विशेषण, विशेष्य 'संवत्', पुँल्लिंग, एकवचन।