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६७१—विस्मयादिक-बोधक और संबोधन-कारक बहुधा वाक्य के आरंभ में आते हैं; जैसे, अरे! यह क्या हुया? मित्र! तुम कहाॅ थे?

६७२—वाक्य किसी भी अर्थ का हो (अं॰—५०६), उसके शब्दों का क्रम हिदी मे प्रायः एक ही सा रहता है; जैसे—

(१) विधानार्थक—राजा नगर में आये।
(२) निषेधवाचक—राजा नगर मे नही आये।
(३) आज्ञार्थक-राजन्, नगर में आइये।
(४) प्रश्नार्थक—राजा नगर में आये?
(५) विस्मयादिबोधक—राजा नगर में आये!
(६) इच्छाबोधक—राजा नगर में आवें।
(७) संदेहसूचक—राजा नगर में आये होंगे।
(८) संकेतार्थक—राजा नगर में आते तो अच्छा होता।

[ सू॰—बोलचाल की भाषा में पदक्रम के संबंध में पूरी स्वतंत्रता पाई जाती है; जैसे, देखते है, अभी हम तुमको। दे चाहे जहाँ से सब दक्षिणा (सत्य॰)।]


चौदहवाँ अध्याय।

पद-परिचय।

६७३—वाक्य का अर्थ पूर्णतया समझने के लिए व्याकरणशास्त्र की सहायता अपेक्षित है; और यह सहायता वाक्य-गत शब्दों के रूप और उनका परस्पर संबंध जताने में पड़ती है। इस प्रक्रिया