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दूसरा अध्याय ।

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लिपि।

८–लिखित भाषा में मूल ध्वनियों के लिए जो चिह्न मान लिये गये हैं, वे भी वर्ण कहलाते हैं। जिस रूप में ये वर्ण लिखे जाते हैं; उसे लिपि कहते हैं। हिंदी-भाषा देवनागरी लिपि में लिखी जाती है।

[ सूचना–देवनागरी के सिवा कैथी, महाजनी आदि लिपियों में भी हिदी-भाषा लिखी जाती है; पर उनका प्रचार सर्वत्र नहीं है। ग्रंथ लेखन और छापने के काम में बहुधा देवनागरी लिपि का ही उपयोग होता है । ]

६–व्यंजनों के अनेक उच्चारण दिखाने के लिए उनके साथ स्वर जोड़े जाते हैं। व्यंजनों में मिलने से बदलकर स्वर का जो रूप हो जाता है उसे मात्रा कहते हैं। प्रत्येक स्वर की मात्रा नीचे लिखी जाती है--

अ, आ, इ, ई, उ, ऊ, ऋ, ए, ऐ, ओ, औ .


१०-अ की कोई मात्रा नहीं है। जब वह व्यंजन में मिलता है, तब व्यंजन के नीचे का चिह्न (्)-नहीं लिखा जाता; जैसे, क्+अ=क ।



  • 'देवनागरी' नाम की उत्पत्ति के विषय में मत-भेद है। श्याम

शास्त्री के मतानुसार देवताओं की प्रतिमाओं के बनने के पूर्व उनकी उपासना सांकेतिक चिह्नों द्वारा होती थी, जो कई प्रकार के त्रिकोणादि यंत्रों के मध्य में लिखे जाते थे । वे यंत्र ‘देवनागर' कहलाते थे और उनके मध्य लिखे जानेवाले अनेक प्रकार के सांकेतिक चिह्न कालांतर में वर्ण माने जाने लगे । इसीसे उनका नाम 'देवनागरी' हुआ है।