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(५) पूर्ण क्रियाद्योतक कृदंत।

६२५—यह कृदंत भी सदा अविकारी रूप में रहता है और क्रिया-विशेषण के समान उपयोग में आता है; जैसे, राजा को मरे दो वर्ष हो गये। उनके कहे क्या होता है? सोना जानिये कसे, आदमी जानिये बसे

(अ) इस कृदंत का उपयोग भी बहुधा तभी होता है जब इसका कर्त्ता और मुख्य क्रिया का कर्त्ता भिन्न-भिन्न होते हैं, जैसे, पहर दिन चढ़े हम लोग बाहर निकले; कितने एक दिन बीते राजा फिर बन को गये।

(आ) सकर्मक पूर्ण क्रियाद्योतक कृदंत से क्रिया और उद्देश्य की दशा सूचित होती है; जैसे, एक कुत्ता मुँह में रोटी का टुकड़ा दबाये जा रहा था ; तुम्हारी लड़की छाता लिये जाती थी। यह जैन महा भयंकर भेष, अंग में भभूत पोते, एड़ी तक जटा लटकाये त्रिशूल घुमाता चला आता है; (सत्य॰)। वह एक नौकर रक्खे है। सॉप मुँह मे मेढक दबाये था।

(इ) नित्यता वा अतिशयता के अर्थ में इस कृदंत की द्विरुक्ति होती है; जैसे, वह बुलाये-बुलाये नहीं आता; लडकी बैठे-बैठे उकता गई; बैठे-बिठाये यह आफत कहाॅ से आई? सिर पर बोझ लादे-लादे वह बहुत दूर चला गया।

(ई) अपूर्ण और पूर्ण क्रियाद्योतक कृदंत बहुधा कर्त्ता से संबंध रखते हैं; पर कभी-कभी उनका संबंध कर्म से भी रहता है और यह बात उनके अर्थ और स्थान-क्रम से सूचित होती है; जैसे, मैंने लड़के को खेलते हुए देखा ; सिपाही ने चोर को साल लिये हुए पकड़ा; इन वाक्यों में कृदंतों का संबंध कर्म से है। उसने चलते हुए नौकर को बुलाया; मैंने सिर झुकाये हुए