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कहने में नहीं आता; न खाना, न पीना, न किसी से कुछ कहना, न सुनना। इन उदाहरणों में क्रियार्थक संज्ञा कर्त्ता कारक में मानी जा सकती है और उसके साथ "अच्छा लगता है" क्रिया अध्याहृत समझी जा सकती है।


नवाँ अध्याय
कृदंत

६२०—क्रियार्थक संज्ञा के सिवा हिंदी में जो और कृदंत हैं वे रूपांतर के आधार पर दो प्रकार के हैं—(१) विकारी (२) अविकारी। फिर इनमें से प्रत्येक के अर्थ के अनुसार कई भेद होते हैं, यथा—

(१) विकारी
(१) वर्त्तमान-कालिक कृदंत
(२) भूतकालिक कृदंत
(३) कर्तृवाचक कृदंत
(२) अविकारी
(१) अपूर्ण क्रियाद्योतक कृदंत
(२) पूर्ण क्रियाद्योतक कृदंत
(३) तात्कालिक कृदंत
(४) पूर्वकालिक कृदंत

(१) वर्त्तमान-कालिक कृदंत।

६२१—इस कृदंत का उपयोग विशेषण वा संज्ञा के समान होता है और इसमें आकारात शब्द की नाईं विकार होते हैं, जैसे, चलती चक्की देखकर, बहता पानी, मारतों के आगे, भागतों के पीछे डूबते को तिनके का सहारा।

(अ) वर्त्तमानकालिक कृदंत विधेय में आकर कर्त्ता वा कर्म की विशेषता (दशा) बतलाता है, जैसे एक शुद्र गाय को मारता