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(इ) संज्ञा के समान क्रियार्थक संज्ञा के पूर्व विशेषण और पश्चात् संबंध-सूचक अव्यय आ सकता है; जैसे, सुन्दर लिखने के लिए उसे इनाम मिला।

(ई) सकर्मक क्रियार्थक संज्ञा के साथ उसका कर्म और अपूर्ण क्रियार्थक संज्ञा के साथ उसकी पूर्त्ति आ सकती है और सब प्रकार की क्रियाओं से बनी क्रियार्थक संज्ञाओं के साथ क्रिया-विशेषण (अथवा अन्य कारक) आ सकते हैं, जैसे, यह काम जल्दी करने में लाभ है। मंत्री के अचानक राजा बन जाने से देश में गड़बड़ मच गई। झूठ को सच कर दिखाना कोई हमसे सीख जाय। पत्नी का 'पति के साथ चिता पर भस्म होना हिंदुओं में प्राचीन काल से चला आता है।

(उ) किसी-किसी क्रियार्थक सज्ञा का उपयेाग जातिवाचक संज्ञा के समान होता है, जैसे, गाना (=गीत), खाना (=भोजन, मुसलमानों में), झरना (=सोता)।

(ऊ) जब क्रियार्थक संज्ञा विधेय में आती है तब उसका प्राणि-वाचक उद्देश्य सप्रदान-कारक में, और अप्राणिवाचक उद्देश्य कर्त्ता-कारक में रहता है, जैसे, मुझे जाना है। लड़के को अपना काम करना था। इस सगुन से क्या फल होना है। जो होना था सो हो लिया।

६१६—जब क्रियार्थक संज्ञा का उपयोग, विकल्प से, विशेषण के समान होता है, उस समय उसके लिग-वचन कर्त्ता अथवा कर्म के अनुसार होते हैं; जैसे, मुझे दवाई पीनी पड़ेगी। जो बात होनी थी, सो हो ली। मुझे सबके नाम लिखने होगे। इन उदाहरणों में क्रमश: पीना, होना और लिखना भी शुद्ध हैं। होनी=भवनीया, पीनी=पानीया और लिखने=लेखनीयाः।