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[सू॰—सामान्य संकेतार्थ-काल में बहुधा दो वाक्य यदि-तो से जुड़े हुए आते हैं और दोनों वाक्यों की क्रियाएँ एक ही काल में रहती है। कभी-कभी मुख्य वाक्य की क्रिया सामान्य-भूत अथवा पूर्ण-भूत में आती है, जैसे, जो तुम उसके पास जाते तो अच्छा था। यदि मेरा नौकर न आता तो मेरा काम हो गया था।]

(आ) असिद्व इच्छा—जैसे, हा। जगमोहनसिंह, आज तुम जीवित होते, कुछ दिन के पश्चात् नीद निज अन्तिम सोते

६०२—कभी-कभी सामान्य सकेतार्थ-काल से, संभाव्य भविष्यत्-काल के अर्थ में, इच्छा सूचित होती है; जैसे, मैं चाहता हूँ कि वह मुझे मिलता (= मिले)। यदि आप कहते (= कहे) तो मैं उसे बुलाता (= बुलाऊँ)। इसके लिए यही उपाय है कि आप जल्दी आते।

६०३—भूतकाल की किसी घटना के विषय में सदेह का उत्तर देने के लिए सामान्य सकेतार्थ-काल का उपयेाग बहुधा प्रश्नवाचक और निषेधवाचक वाक्य में होता है, जैसे, अर्जुन की क्या सामर्थ्य थी कि वह हमारी बहिन को ले जाता? मैं इस पेड़ की क्यों न सींचती?

(६) सामान्य वर्त्तमान-काल।

६०४—इस काल के अर्थ ये हैं—

(अ) बोलने के समय की घटना—जैसे, अभी पानी बरसता है। गाडी आती है। वे आपको बुलाते हैं।

(आ) ऐतिहासिक वर्त्तमान—भूतकाल की घटना का इस प्रकार वर्णन करना मानो वह प्रत्यक्ष हो रही हो, जैसे, तुलसी दासजी ऐसा कहते हैं। राजा हरिश्चद्र मंत्रियों सहित आते हैं। शोक विकल सब रोवहि रानी (राम॰)।

(इ) स्थिर सत्य—साधारण नियम किंवा सिद्धांत बताने में, अर्थात् ऐसी बात कहने में जो सदैव और सत्य है, इस काल का

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