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५७३—जब अनेक संज्ञाए कर्त्ता-कारक में आकर किसी एक ही प्राणी वा पदार्थ को सूचित करती हैं, तब उनकी क्रिया एकवचन में आती है; जैसे, यह प्रसिद्ध नाविक और प्रवासी सन् १५०६ ई॰ में परलोक को सिधारा; उसके वंश में कोई नामलेवा और पानीदेवा नहीं रहा।

(अ) यही नियम पुस्तकों आदि के संयुक्त नामों में घटित होता है। जैसे "पार्वती और यशोदा" इंडियन प्रेस में छपी है, "यशोदा और श्रीकृष्ण" किसका लिखा हुआ है।

५७४—यदि कोई कर्त्ता विभाजक समुच्चयबोधक के द्वारा जुड़े हों तो अंतिम कर्त्ता क्रिया से अन्वित होता है; जैसे, इस काम में कोई हानि अथवा लाभ नहीं हुआ; मैं या मेरा भाई जायगा; माया मिली न राम; पोथियाँ या साहित्य किस चिड़िया का नाम है (विचित्र॰); वे अथवा तुम वहाँ ठहर जाना।

५७५—यदि एक वा अधिक उद्देश्यों का कोई समानाधिकरण शब्द हो तो क्रिया उसी के अनुसार होती है; जैसे, अष्टमहासिद्धि, नवनिधि और बारहों प्रयोग, आदि देवता आते हैं (सत्य॰); मर्द, औरत सभी चौकोर चेहरे के होते हैं (सर॰); धन, धरती सबका सब हाथ से निकल गया ( गुटका॰ ); स्त्री और पुत्र कोई साथ नही जाता; ऐसी पतिव्रता स्त्री, ऐसा आज्ञाकारी पुत्र, और ऐसे तुम आए—यह संयेाग ऐसा हुआ मानो श्रद्धा और वित्त और विधि तीनों इकट्ठे हुए (शकु॰), सुरा और सुंदरी दो ही तो प्राणियों को पागल बनाने की शक्ति रखती हैं (तिलो॰)।

[सु॰—"विचित्र-विचरण" में "ईमान और जान दोनों ही बची", यह वाक्य आया है। इसमें क्रिया पुल्लिंग में चाहिये, क्योंकि उद्देश्य की दोनों संज्ञाएँ भिन्न-भिन्न लिंग की हैं (अ॰—५७०—सू॰), और उनके लिए जो समुदायवाचक शब्द आया है वह भी दोनों का बोध कराता है। संभव है कि "बची" शब्द छापे की मूल हो।]