५६१—हिंदी में समानाधिकरण शब्द अथवा वाक्यांश बहुधा नीचे लिखे अर्थ सूचित करते हैं—
(अ) नाम, पदवी, दशा अथवा जाति—जैसे, महाराना प्रतापसिंह, नारद मुनि, गोसांई तुलसीदास, रामशंकर त्रिपाठी, गोपाल नाम का लड़का, मुझ आफत को टालने के लिए।
(आ) परिणाम—दो सेर आटा, एक तोला सोना, दो बीघे धरती, एक गज कपड़ा, दो हाथ चौड़ाई, इत्यादि।
(इ) निश्चय—अच्छी तरह से पढ़ना, यह एक गुण है, पिता-पुत्र दोनों बैठे हैं, को यह चल्यो रुद्र सम आवत (सत्य॰), इत्यादि।
(ई) समुदाय—सोना, चॉदी, तॉवा आदि धातु कहते हैं, राज-पाट, धन-धाम सब छूटा (सत्य॰), वे सबके सब भाग गये (विचित्र॰), धन-धरती सबका सब हाथ से निकल गया। (गुटका॰)।
(उ) पृथक्ता—पोथी-पत्रा, पूजा-पाठ, दान-होम-जप, कुछ भी काम न आया (सत्य॰), विपत्ति में भाई-बंधु, स्त्री-पुत्र, कुटुंब-परिवार, कोई साथी नही होता।
(ऊ) शब्दार्थ—जहाँ से नगरकोट (शहरपनाह) का फाटक सौ गज दूर था (विचित्र॰), संवत् ११६३ (सन् १९०६) में (नागरी॰), किस दशा मे—किस हालत में, समाज के बनाये हुए नियम अर्थात् कायदे हर आदमी को मानना मुनासिब समझा जायगा (स्वा॰)?
(ऋ) भूल-संशाधन—इसका उपाय (उपयोग?) सीमा के बाहर हो जाता हैं (सर॰), मैं इस समय कचहरी को—नहीं बाजार को जा रहा था।