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लिंग, वचन, वाच्य, अर्थ और प्रयाग में आती है। यदि क्रिया सकर्मक हो तो उसके साथ कर्म भी आता है; जैसे, लडका चित्र खीचता है। इस वाक्य में चित्र कर्म है। वाक्य के और भी खंड हेाते हैं, पर वे सब मुख्य दोनों खंडों के आश्रित रहते हैं। बिना इन दोनों अवयवों (अर्थात् उद्देश्य और विधेय) के वाक्य नहीं बन सकता और प्रत्येक वाक्य में एक संज्ञा और एक क्रिया अवश्य रहती है।

[सू॰—उद्देश्य और विधेय का विशेष विवेचन इसी भाग के दूसरे परिच्छेद में किया जायगा।]