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(२) कभी-कभी विभक्ति का लोप हो जाता है, और विकृत रूप केवल प्रथम शब्द में अथवा कभी-कभी दोनों शब्दों में पाया जाता है। जैसे, हाथोंहाथ, रातोंरात, बीचोंबीच, दिनोंदिन, जंगलों-जंगलों, इत्यादि।]

४९३—सर्वनामों की पुनरुक्ति संज्ञाओं ही के समान होती है। यह विषय सर्वनामों के अध्याय में आ चुका है।

४९४—विशेषणों की भी पुनरुक्ति का विचार विशेषणों के अध्याय में हो चुका है। यहाँ गुणवाचक विशेषणों की पुनरुक्ति के कुछ विशेष अर्थ लिखे जाते हैं—

(१) भिन्नता—जैसे, "हरी-हरी पुकारती हरी-हरी लतान में।" नये-नये सुख, अनूठे-अनूठे खेल।

(२) एकजातीयता—बड़े-बड़े लोगों को कुरसी दी गई, छोटे-छोटे लड़के अलग बिठाये गये।

(३) अतिशयता—मीठे-मीठे आम, अच्छे-अच्छे कपड़े, ऊँचे-ऊँचे घर, काले-काले केश, फूले-फूले चुन लिये। (कबीर)।

(४) न्यूनता—फीका-फीका स्वाद, तरकारी खट्टी-खट्टी लगती है, छोटी-छोटी आँखें, इत्यादि।

४९५—क्रिया की पुनरुक्ति से नीचे लिखे अर्थ सूचित होते हैं—

(१) हठ—मैं यह काम करूँगा, करूँगा और फिर करूँगा। वह आयगा, आयगा और फिर आयगा। तुम आओगे, आओगे और फिर आओगे।

(२) संशय—आप आयँगे आयँगे कहते हैं, पर आते नहीं। वह गया, गया, न गया न गया। पिछले वाक्य में कुछ शब्दों का अध्याहार भी माना जा सकता है, जैसे, (जो) वह गया (तो) गया (और) न गया (तो) न गया।