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[सू॰—पुनरुक्त शब्दों को, प्रथम शब्द के पश्चात् २ लिखकर, सूचित करना अशुद्ध है, जैसे, धीरे २, राम २।]

४९२—संज्ञा की पुनरुक्ति नीचे लिखे अर्थों में होती है—

(१) संज्ञा से सूचित होनेवाली वस्तुओं का अलग-अलग निर्देश—जैसे, घर-घर डोलत दीन ह्वै, जन-जन जॉचत जाय। कौड़ी-कौड़ी माया जोड़ी। मेरे रोम-रोम प्रसन्न हो रहे हैं।

[सू॰—यदि इन पुनरुक्त शब्दों का प्रयेाग संज्ञा अथवा विशेषण के समान हो तो इन्हें कर्मधारय और क्रिया-विशेषण के समान हो तो अव्ययी-भाव कहना चाहिए। ऊपर के उदाहरणों में "जन-जन" (संज्ञा), "कौड़ी-कौड़ी" विशेषण तथा "रोम-रोम" (संज्ञा) कर्मधारय समास है और "घर-घर" (क्रि॰ वि॰) अव्ययीभाव-समास है।]

(२) अतिशयता—जैसे, बर्तन टुकड़े-टुकड़े हो गया, राम-राम कहि राम कहि, उसने मुझे दाने-दाने को कर दिया, हँसी-हँसी मे लड़ाई हो पड़ी, इत्यादि।

(३) परस्पर-संबंध—भाई-भाई का प्रेम, बहिन-बहिन की बात-चीत, मित्र-मित्र का व्यवहार, ठठेरे-ठठेरे बदलाई।

(४) एकजातीयता—जैसे, फूल-फूल अलग रख दो, ब्राह्मण-ब्राह्मण की जेवनार, लड़के-लड़के यहॉ बैठे हैं।

(५) भिन्नता—"आदमी-आदमी अंतर", "देश-देश के भूपति नाना," बात-बात मे भेद है, रंग-रंग के फूल, इत्यादि।

(६) रीति—पाँव-पाँव चलना, लोटे-लोटे जल भरना (पहले एक लोटा, फिर दूसरा लोटा और इसी क्रम से आगे)।

[सू॰—(१) पूर्ण-पुनरुक्त-शब्दों के अत्य शब्द में विभक्ति का योग होता है, परन्तु उसके पूर्व दोनों शब्द विकृत रूप में आते हैं; जैसे, लड़के-लड़के की लड़ाई, फूलों-फूलों को अलग रख दो। यह विकृत रूप आकारांत शब्दों के दोनों वचनों में और दूसरे शब्दों के केवल बहुवचन में होता है।