पृष्ठ:हिंदी व्याकरण.pdf/४८९

यह पृष्ठ जाँच लिया गया है।
(४६८)

चिह्न (हाईफन) से मिलाये जाते हैं और जिन्हें केवल योजक से मिलाना उचित है वे सटाकर लिख दिये जाते हैं। फिर, जिस सामासिक शब्द के किसी न किसी प्रकार मिलाकर लिखने की आवश्यकता है, वह अलग-अलग लिखा जाता है।

[टी॰—हिंदी-व्याकरणों में व्युत्पत्ति-प्रकरण बहुत ही संक्षेप रीति से दिया गया है। इसका कारण यह है कि उनमें पुस्तकों के परिमाण के अनुसार इस विषय के स्थान मिला है। अन्यान्य पुस्तकों को छोड़कर हम यहाँ केवल "हिंदी-व्याकरण-प्रवेशिका" के इस विषय के कुछ अंश की परीक्षा करते है, क्योकि इस पुस्तक में यह विषय दूसरी पुस्तकों की अपेक्षा कुछ अधिक विस्तार से दिया गया है। स्थानाभाव के कारण हम इस व्याकरण में दिए गए समास ही के कुछ उदाहरणों पर विचार करेंगे। तत्पुरुष समास के उदाहरणों में लेखक ने "दम भरना", "भूख (?) मरना", "ध्यान करना", "काम आना", इत्यादि कृदंत-वाक्यांशों को सम्मिलित किया है, और इनका नियम संभवतः भट्टजी के "हिंदी व्याकरण" से लिया है। संस्कृत में राशीकरण, वक्रीभवन आदि संयुक्त कृदंतों को समास मानते हैं, क्योंकि इनमें विभक्ति का लोप और पूर्व-पद में रूपांतर हो जाता है, पर हिंदी के पूर्वोक्त कृदत-व्याक्याशों में न विभक्ति का नियमित लोप ही होता है और न रूपांतर ही पाया जाता है। "काम आना" को विकल्प से "काम में आना" भी कहते है। फिर इन व्याक्यांशों के पदो के बीच, समास के नियम के विरुद्ध, अन्यान्य शब्द भी आ जाते है; जैसे, काम न आना, ध्यान ही करना, दम भी भरना, इत्यादि। संस्कृत में केवल कृ, भू आदि दो-तीन धातुओं से ऐसे नियमित समास बनते हैं, पर हिंदी में ऐसे प्रयोग अनियमित और अनेक है। इसके सिवा यदि "काम करना" को समास मानें तो "आगे चलना" को भी समास मानना पडेगा, क्योंकि 'आगे' के पश्चात् भी विकल्प से विभक्ति प्रकट वा लुप्त रह सकती है। ऐसी अवस्था में उन शब्दों का भी समास मानना होगा जिनमें विभक्ति का लोप रहने पर भी स्वतंत्र व्याकरणीय सबंध हैं। "हिंदी व्याकरण-प्रवेशिका" में दिए हुए इन कृदत-वाक्यांशों के पूर्वोक्त कारणों से संयुक्त धातु भी नहीं मान सकते (अ॰—४२०—सू॰)। अतएव इन सब उदाहरणों को समास मानना भूल है।]