(इ) किसी-किसी समास के अंत में क जोड़ दिया जाता है; जैसे, सपत्नीक, शिक्षाविषयक, अल्पवयस्क, ईश्वरकर्त्तृक, सकर्मक, अकर्मक, निरर्थक।
(ई) नियम-विरुद्ध शब्द—द्वीप (जिसके दोनों ओर पानी है अर्थात् टापू), अंतरीप (द्वीप; हिंदी में स्थल का अग्रभाग जो पानी में चला गया हो), समीप (पानी के पास, निकट), शतधन्वा, सपत्नी (समान पति है जिसका, सौत), सुगंधि, सुदंती, (सुंदर दाँत हैं जिसके वह स्त्री)।
४७४—द्वंद्व समास के कुछ विशेष नियम—
(अ) कहीं-कहीं प्रथम पद के अन्त में दीर्घ आ हो जाता है; जैसे, मित्रावरुण।
(आ) नियम-विरुद्ध शब्द—जाया+पति=दंपती; जंपती जायापती; अन्य+अन्य=अनोन्य, पर+पर=परस्पर, अहन्+रात्रि=अहोरात्र।
४७५—यदि किसी समास के अन्त में आ वा ई स्त्री प्रत्यय हो और समास का अर्थ उसके अवयवों से भिन्न हो तो उस प्रत्यय को ह्रस्व कर देते हैं, जैसे, निर्लज्ज, सकरुण, लब्धप्रतिष्ठ, दृढ़प्रतिज्ञ।
हिंदी समासों के विशेष नियम।
४७६—तत्पुरुष-समास में यदि प्रथम पद का आद्य स्वर दीर्घ हो तो वह बहुधा ह्रस्व हो जाता है और यदि पद आकारांत वा ईकारांत हो तो वह अकारांत हो जाता है, जैसे, घुड़दौड़, पनभरा, मुॅहचीरा, कनकटा, रजवाड़ा, अमचूर, कपड़छन।
अप॰—घोड़ागाड़ी, रामकहानी, राजदरबार, सोनामाखी।
४७७—कर्मधारय-समास में प्रथम स्थान में आनेवाले छोटा, बड़ा, लंबी, खट्टा, आधा, आदि आकारांत विशेषण बहुधा अका-