पृष्ठ:हिंदी व्याकरण.pdf/४८२

यह पृष्ठ जाँच लिया गया है।
(४६१)


(१०) सह बहुब्रीहि-सपुत्र (पुत्र के साथ), सकर्मक, सदेह, सावधान, सपरिवार, सफल, सार्थक।

हिंदी-उदा॰—सबेरा, सचेत, साढे।

(११) दिगंतराल बहुब्रीहि—पश्चिमोत्तर (वायव्य), दक्षिण-पूर्व (आग्नेय)।

(१२) व्यतिहार बहुब्रीहि—जिस समास से एक प्रकार का युद्ध, दोनों दलों के समान युद्ध-साधन और उनका आघात-प्रत्याघात सूचित होता है उसे व्यतिहार-बहुब्रीहि कहते हैं।

सं॰ उदा॰—मुष्टामुष्टि (एक दूसरे को मुष्टि अर्थात् मुक्का मारकर किया हुआ युद्ध), हस्ताहस्ति, दंडादंडि। संस्कृत में ये समास नपुंसक लिंग, एक वचन और अव्यय रूप में आते हैं।

हिंदी-उदाहरण—लठालठी, मारामारी, बदाबदी, कहाकही, धक्काधकी, घूसाघूसी, इत्यादि।

[सू॰—(क) हिंदी में से समास स्त्रीलिंग और एकवचन में आते हैं। इनमें पहले शब्द के अंत में बहुधा आ और दूसरे शब्द के अंत में ई आदेश होती है। कभी-कभी पहले शब्द के अंत में म और दूसरे शब्द के अंत में आ आता है; जैसे, लट्ठमलट्ठा, धक्कमधक्का, कुश्तमकुश्ता, घुस्समघुस्सा। इस प्रकार के शब्द पुँल्लिंग, एकवचन में आते है।

(ख) कभी-कभी दूसरा शब्द भिन्नार्थी, अर्थहीन अथवा समानुप्रास होता है; जैसे, माराकूटी, कहासुनी, खींचातानी, ऐंचाखेंची, मारामूरी। इस प्रकार के शब्द बहुधा दो कृदंतों के योग से बनते हैं।]

(१३) आदि अथवा अव्ययपूर्व बहुब्रीहि—निर्दय (निर्गता अर्थात् गई हुई है दया जिसकी), विफल, विधवा, कुरूप, निर्धन।

हिंदी-उदा॰—सुडौल, कुढंगा, रंगबिरंगा। पिछले शब्द में संज्ञा की पुनरुक्ति हुई है।