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(२) विशेषणोत्तर-पद—जिसमें दूसरा पद विशेषण होता है।

संस्कृत-उदा॰—जन्मांतर (अंतर=अन्य), पुरुषोत्तम, नराधम, मुनिवर। पिछले तीन शब्दों का विग्रह दूसरे प्रकार से करने से ये तत्पुरुष हो जाते हैं; जैसे, पुरुषों में उत्तम=पुरुषोत्तम।

हिंदी-उदा॰—प्रभुदयाल, शिवदीन, रामदहिन।

(३) विशेषणोभयपद—जिसमें दोनों पद विशेषण होते हैं।

संस्कृत-उदाहरण—नीलपीत, शीतोष्ण, श्यामसुंदर, शुद्धाशुद्ध, मृदु-मद।

हिंदी-उदा॰—लालपीला, भलाबुरा, ऊँचनीच, खटमिट्ठा, बडाछोटा, मोटाताजा।

उदू-उदा॰—सख्त-सुस्त, नेक-बद, कम-बेश।

(४) विषयपूर्वपद—धर्मबुद्धि (धर्म है, यह बुद्धि—धर्मविषयक बुद्धि), विंध्य-पर्वत*[१]

(५) अव्ययपूर्वपद—दुर्वचन, निराशा, सुयोग, कुवेश।

हिंदी-उदा॰—अधमरा, दुकाल।

(६) संख्यापूर्वपद—जिस कर्मधारय समास में पहला पद संख्यावाचक होता है और जिससे समुदाय (समाहार) का बोध होता है उसे संख्यापूर्वपद कर्मधारय कहते हैं। इसी समास को संस्कृत व्याकरण में द्विगु कहते हैं।

उदा॰—त्रिभुवन (तीन भुवनों का समाहार), त्रैलोक्य (तीनों लोकों का समाहार)—इस शब्द का रूप त्रिलोकी भी होता है। चतुष्पदी (चार पदों का समुदाय), पंचवटी, त्रिकाल, अष्टाध्यायी।

हिंदी-उदा॰—पंसेरी, दोपहर, चौबोला, चौमासा, सतसई, सतनजा, चौराहा, अठवाड़ा, छटाम, चौघड़ा, दुपट्टा, दुअन्नी।


  1. * विन्ध्य नामक पर्वत।