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इस्तान

अरबिस्तान अफगानिस्तान तुर्किस्तान
हिंदुस्तान कब्रिस्तान

[सू॰—फारसी का "इस्तान" प्रत्यय रूप और अर्थ में संस्कृत के "स्थान" शब्द के सदृश होने के कारण, हिंदी शब्दों के साथ बहुधा "स्थान" ही का प्रयोग करते है; जैसे, हिंदुस्थान, राजस्थान इत्यादि।]

शन—गुलशन (बाग)।

जार—गुलजार (पुष्प-स्थान)। (हिंदी में गुलजार शब्द का अर्थ बहुधा "रमणीय" होता है।) बाजार (अवा=भोजन)।

बार—दरबार, जंगबार (जंजीबार)।

[सू॰—फारसी समासों के उदाहरण आगे समास-प्रकरण में दिए जायँगे ।]

(२) अरबी प्रत्यय।

(क) अरबी कृदंत।

४४०—अरबी के प्रायः सभी शब्द किसी न किसी धातु से बने हुए होते हैं और अधिकांश धातु त्रिवर्ण रहते हैं। कुछ धातु चार वर्णों के और कुछ पॉच वर्णों के भी होते हैं। धातुओं के अक्षरों के मान (वजन) के अक्षर सब कृदंतों में पाये जाते हैं और वे मूलाक्षर कहते हैं । इन मूलाक्षरों के सिवा कुछ और भी अक्षर कृदंतों की रचना में प्रयुक्त होते हैं जिन्हें अधिकाक्षर कहते हैं। ये अधिकाक्षर सात हैं—अ, त, स, म, न, ऊ, य और इन्हें स्मरण रखने के लिये इनसे "अतसमनूय" शब्द बना लिया गया है। एक धातु से बने हुए सभी कृदत हिंदी में नहीं आते; और जो आते हैं उनमें भी बहुधा उच्चारण की सुगमता के लिये रूपांतर कर लिया जाता है।

अरबी में धातुओं और कृदंतों के संपूर्ण रूप वजन अर्थात् नमूने पर बनाये जाते हैं; और फ़ अ ज को मूलाक्षर मानकर इन्हीं-