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(ई) किसी-किसी विशेषणों में यह प्रत्यय लगाकर भाववाचक संज्ञाएँ बनाते हैं, जैसे, गृहस्थ—गृहस्थी, बुद्धिमान—बुद्धिमानी, सावधान सावधानी, चतुर—चातुरी। इस अर्थ में यह प्रत्यय उर्दू शब्दों में बहुतायत से आता है, जैसे, गरीब—गरीबी, नेक—नेकी, बद—बदी, सुस्त—सुस्ती।
इस प्रत्यय के और उदाहरण अगले अध्याय में दिये जायँगे।
(उ) कुछ संख्यावाचक विशेषणो से इस प्रत्यय के द्वारा समुदायवाचक संज्ञाएँ बनती हैं, जैसे, बीस-बीसी, बत्तीसी, पच्चीसी, इत्यादि।
(ऊ) कई-एक संज्ञाओं में भी यह प्रत्यय लगाने से भाववाचक संज्ञाएँ बनती हैं, जैसे,
चोर—चोरी | खेत—खेती |
किसान—किसानी | महाजन—महाजनी |
दलाल—दलाली | डाक्टर—डाक्टरी |
सवार—सवारी
"सवारी" शब्द यात्री के अर्थ में जाति-वाचक है।
(ऋ) भूषणार्थक—अँगूठी, कंठी, पहुँची, पैरी, जीभी (जीभ साफ़ करने की सलाई), अगाड़ी, पिछाड़ी।
ईला-इस प्रत्यय के योग से विशेषण बनते हैं, जैसे,
रंग—रँगीला | छबि—छबीला | लाज—लजीला |
रस–रसीला | जहर—जहरीला | पानी—पनीला |
(अ) कोई-कोई संज्ञाएँ; जैसे, गोबर-गोबरीला।
ईसा—मूँड-मुँडीसा, उसीसा।
उआ—इस प्रत्यय से मछुआ, गेरुआ, खारुआ, फगुआ, टहलुआ, आदि विशेषण अथवा संज्ञाएँ बनती हैं।