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दूर हो जावे। इस अ प्रत्यय के आदेश से धातु के अंत्य अ का लोप समझना चाहिये।

(अ) किसी-किसी धातु की उपांत्य हवं इ और उ के गुणदेश होता है; जैसे,

मिलना—मेल, हिलना—मिलना—हेलमेल, झुकना—झोक।

(आ) कहीं-कही धातु के उपांत्य अ की वृद्धि होती है; जैसे,

अड़ना—आड़। लगना—लाग।
चलना—चाल । फटना—फाट।
बढ़ना—बाढ़।

(इ) इसके ये से कोई-कोई विशेषण भी बनते हैं; जैसे,

बढ़ना—बढ़। घटना—घट। भरना—भर।

(ई) इस प्रत्यय के येाग से पूर्वकालिक कृदंत अव्यय बनता है;

जैसे, चलना—चल। जाना—जा। देखना—देख।

[सू॰—प्राचीन कविता में इस अव्यय का इकारांत रूप पाया जाता है; जैसे, देखना—देखि। फेकना—फेकि। उठना—उठि। स्वरान्त धातुओं के साथ इ के स्थान में बहुधा ये का प्रदेश होता है; जैसे, खाय, गाय।]

अक्कड़ (कर्तृवाचक)—

बूझना—बुझक्कड़ कूदना—कुदक्कड़
भूलना—भुलक्कड़ पीना—पियक्कड़

अंत (भाववाचक)—

गढ़ना—गढंत लिपटना—लिपटंत
लड़ना—लड़त रटना—रटंत

—इस प्रत्यय के योग से बहुधा भाववाचक संज्ञाएँ बनती हैं; जैसे,

घेरना—घेरा फेरना—फेरा जोड़ना—जोड़ा