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(इ) कहीं-कहीं ति के बदले नि आती है।

हा—हानि, ग्लै—ग्लानि, इत्यादि।

त्र (करणवाचक)—

त्र—नेत्र, श्रु—श्रोत्र, पा—पात्र, शास्—शास्त्र।

अस्—अस्त्र, शस्—शस्त्र, क्षि—क्षेत्र।

(ई) किसी किसी धातु में त्र के बदले इत्र पाया जाता है।

खन्—खनित्र, पृ—पवित्र, चर्—चरित्र।

त्रिम (निवृत्ति के अर्थ में)—

कृ—कृत्रिम।

(भाववाचक)—

यत् (उपाय करना)—यत्न स्वप्—स्वप्न प्रच्छ—प्रश्न
यज्—यज्ञ याच्—याञ्चा तृष्—तृष्णा

मन् (विविध अर्थ में)—

दा—दाम कृ—कर्म सि(बाँधना)—सीमा
धा-धाम छद् (छिपाना)—छद्म चर्—चर्म
वृह्—ब्रह्म

[सू॰—ऊपर लिखे अकारांत शब्द 'मन्' प्रत्यय के न् का लोप करने से बने हैं। हिंदी में मूल व्य जनांत रूप का प्रचार न होने के कारण प्रथमा के एकवचन के रूप दिये गये हैं।]

मान

यह प्रत्यय अत् के समान वर्त्तमानकालिक कृदंत का है। इस प्रत्यय के योग से बने हुए शब्द हिंदी में बहुधा संज्ञा अथवा विशेषण होते हैं।

यज्—यजमान वृत्—वर्तमान वि+रज्—विराजमान
विद्—विद्यमान दीप्—देदीप्यमान ज्वल्—जाज्वल्यमान