पृष्ठ:हिंदी व्याकरण.pdf/४१

यह पृष्ठ जाँच लिया गया है।
(२०)


वती के आत्मघात की ऐतिहासिक कथा है। इस पुस्तक की भाषा अवधी है।

वैष्णव धर्म का एक और भेद है जिसमें लोग श्रीकृष्ण को अपना इष्ट-देव मानते हैं। इस संप्रदाय के संस्थापक वल्लभस्वामी थे जिनके पूर्वज दक्षिण के रहनेवाले थे। वल्लभस्वामी ने सोलहवीं सदी के आदि में उत्तर भारत में अपने मत का प्रचार किया । इनके आठ शिष्य थे, जो "अष्टछाप" के नाम से प्रसिद्ध हैं। ये आठों कवि ब्रज में रहते थे और ब्रजभाषा में कविता करते थे। इनमें सूरदास मुख्य हैं, जिनका समय सन् १५५० ई० के लगभग है। कहते हैं, इन्होंने सवा लाख पद के लिखे हैं, जिनका संग्रह “सूर-सागर" नामक ग्रंथ में है। इस पंथ के चौरासी गुरुओं का वर्णन "चौरासी-वार्ता" नामक ग्रंथ में पाया जाता है, जो ब्रजभाषा के गद्य में लिखा गया है, पर इस ग्रंथ का समय निश्चित नहीं है।

अकबर ( १५५६-१६०५ ई० ) के समय में ब्रजभाषा की कविता की अच्छी उन्नति हुई । अकबर स्वयं व्रजभाषा में कविता करते थे और उनके दरबार में हिंदू कवियों के साथ रहीम, फैजी, फहीम आदि मुसलमान कवि भी इस भाषा में रचना करते थे। हिंदू कवियों में टोडरमल, बीरबल, नरहरि, हरिनाथ, करनेश और गंग आदि अधिक प्रसिद्ध थे।

२--मध्य-हिंदी--यह हिंदी-कविता के सत्ययुग का नमूना

छ यह एक अन्योक्ति भी है जिसमें सत्य ज्ञान के लिए आत्मा की खोज का और उस खोज में आनेवाले विघ्नों का वर्णन है ।

+ संभवतः सूरदासजी के पदों की संख्या सवा लाख अनुष्टुप् लोकों के बराबर होगी। इससे भ्रमवश लोगों ने सवा लाख पदों की बात प्रचलित कर दी। ग्रंथ का विस्तारः बताने के लिए प्राचीन काल से अनुष्टुप् छंद एक प्रकार की नाप मान लिया गया है।