(३८०)
प्रति—विरुद्ध, सामने, एक-एक; जैसे, प्रतिकूल, प्रतिक्षण, प्रतिध्वनि, प्रतिकार, प्रतिनिधि, प्रतिवादी, प्रत्यक्ष, प्रत्युपकार, प्रत्येक।
वि—भिन्न, विशेष, अभाव; जैसे, विकास, विज्ञान, विदेश, विधवा, विवाद, विशेष, विस्मरण (हि॰—बिसरना)।
सम्—अच्छा, साथ, पूर्ण, जैसे, संकल्प, संगम, संग्रह, संतोष, संन्यास, संयोग, संस्कार, संरक्षण, संहार।
सु—अच्छा, सहज, अधिक, जैसे, सुकर्म, सुकृत, सुगम, सुलभ, सुशिक्षित, सुदूर, स्वागत।
हिंदी—सुडौल, सुजान, सुघर, सपूत।
४३४—कभी-कभी एक ही शब्द के साथ दो-तीन उपसर्ग आते हैं, जैसे, निराकरण, प्रत्युपकार, समालोचना, समभिव्याहार (भा॰ प्र॰)।
४३५—संस्कृत शब्दों में कोई-कोई विशेषण और अव्यय भी उपसर्गों के समान व्यवहृत होते हैं। इनका यहाँ उल्लेख करना आवश्यक है, क्योंकि ये बहुधा स्वतन्त्र रूप से उपयोग में नहीं आते।
अ—अभाव, निषेध; जैसे, अगम, अज्ञान, अधर्म, अनीति, अलौकिक, अव्यय।
स्वरादि शब्दों के पहले "अ" के स्थान में "अन्" हो जाता है और "अन्" के "न्" में आगे का स्वर मिल जाता है। उदा॰—अनन्तर, अनिष्ट, अनाचार, अनादि, अनायास, अनेक।
हिं॰—अछूत, अजान, अटल, अथाह, अलग।
अधस्—नीचे, उदा॰—अधोगति, अधोमुख, अधोभाग, अधःपतन, अधस्तल।
अंतर्—भीतर; उदा॰—अंतःकरण, अंतःस्थ, अंतर्दशा, अंतर्धान, अंतर्भाव, अंतर्वेदी।