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"समुद्र अपनी बड़ी-बड़ी लहरें ऊँची उठाकर तट की तरफ बढ़ता है"। (रघु॰)।

अप॰—जब सकर्मक क्रिया में कर्म की विवक्षा नही रहती तब उसका प्रयोग अकर्मक क्रिया के समान होता है, और प्रकृत क्रियाविशेषण कर्त्ता के साथ अन्वित न होकर सदैव पुल्लिंग एक वचन (अविकृत) रूप में रहता है, जैसे, "मैं इतना पुकारती हूँ। (सत्य॰)। "लड़की अच्छा गाती है"। "वे तिरछा लिखते हैं।" "इसी डर से वे थोड़ा बोलते हैं"। (रघु॰)।

(ई) सकर्मक भावेप्रयोग में पूर्वोक्त क्रियाविशेषण विकल्प से विकृत अथवा अविकृत रूप में आते हैं, और अकर्मक भावेप्रयोग में बहुधा अविकृत रूप में, जैसे, "एकमात्र नंदिनी ही को उसने सामने खड़ी देखा। (रघु॰)। "इसके (हमने) इतना बड़ा बनाया।" (सर॰)। मुझसे सीधा नहीं चला जाता"। (अं॰—५९२)।

सु॰—सदा, सर्वदा, बहुधा, वृथा, आदि आकारांत क्रियाविशेषणो का रूपातंर नहीं होता, क्योंकि ये शब्द मूल में विशेषण नहीं है।

४२८—सबंध सूचक अव्यय—जो संबंध-सूचक अव्यय मूल में विशेषण हैं (अं॰—३४०) उनमें आकारतां शब्द विशेष्य के लिंगवचनानुसार बदलते हैं। विशेष्य विभक्तंत किवा संबधसूचकात हो तो सबंध-सूचक विशेषण विकृत रूप में आता है, जैसे, "तुम सरीखे छोकड़े", "यह आप ऐसे महात्माओं ही का काम है", इत्यादि।