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जैसे, "गाते गाते चुके नहीं वह चाहे मैं ही चुक जाऊँ" (एकात॰)।

(५) अपूर्ण क्रियाद्योतक कृदंत के मेल से बनी हुई।

४१६—अपुर्ण क्रियाद्योतक कृदंत के आगे "बनना" क्रिया के जोड़ने से योग्यताबोधक क्रिया बनती है, जैसे, उससे चलते नहीं बनता, लड़के से किताब पढ़ते नहीं बनती; इत्यादि। इससे बहुधा भाववाच्य का अर्थ सूचित होता है। (अं॰—३५५)।

यह क्रिया बहुधा पराधीनता के अर्थ में भी आती है, जैसे, उससे आते बना। कभी-कभी आश्चर्य के अर्थ में तात्कालिक कृदंत के आगे "बनना" जाड़ते हैं, जैसे, यह छवि देखतेही बनती है।

(६) पूर्ण क्रियाद्योतक कृदत से बनी हुई।

४१७—पूर्ण क्रियाद्योतक कृदत से दो प्रकार की संयुक्त क्रियाएँ बनती हैं—(१) निरतरता-बोधक (२) निश्चय-बोधक।

४१८—सकर्मक क्रिया के पूर्ण क्रियाद्योतक कृदंत के आगे "जाना" क्रिया जोड़ने से निर तरता-बोधक क्रिया बनती है, जैसे, यह मुझे निगले जाता है। इस लता के क्यों छोड़े जाती है। लड़कीं यह काम किये जाती है। पढ़े जाये।

यह क्रिया बहुधा वर्त्तमानकालिक कृदंत से बने हुए कालों में तथा विधि-कालों में आती है।

४१९—पूर्ण क्रियाद्योतक कृदंत के आगे लेना, देना, डालना, पैर बैठना, (अवधारण की सहायक क्रियाएँ) जेाड़ने से निश्चयबोधक संयुक्त क्रियाएँ बनती हैं। ये क्रियाएँ बहुधा सकर्मक क्रियाओं के साथ वर्त्तमानकालिक कृदंत से बने हुए कालों में ही आती हैं, जैसे, मैं यह पुस्तक लिए लेता हूँ। वह कपड़ा दिये देता है। इम कुछ कहे बैठते हैं। वह मुझे मारे डालता है। "मैं उस आज्ञापत्र का अनुवाद किये देता हूँ"। (विचित्र॰)।