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लिखें तो छिपे के "स्त्रियों" लिखना चाहिये और जो एक को "कीजिए" और दूसरे के "कीजियो" लिखें तो प्रायः एक प्रकार के दोनों रूपों को इस प्रकार भिन्न-भिन्न लिखने से व्यर्थ ही भ्रम उत्पन्न होगा। इस प्रकार के दोनों अनमिल रूप भारत-भारती में पाये जाते हैं, जैसे,

"इस देश के हे दीनबन्धो, आप फिर अपनाइए
भगवान्! भारतवर्ष के फिर पुण्य-भूमि बनाइए,"
"दाता! तुम्हारी जय रहे, हमके दया कर दीजिये,
माता! मरे हा! हा इमारी शीघ्र ही सुध लीजियो।

हम अपने मत के समर्थन में भारत-मित्र-संपादक प॰ अम्बिकाप्रसाद वाजपेयीजी के एक लेख का कुछ अश यहाँ उद्धृत करते हैं—

'अब' "चाहिये" और "लिये" जैसे शब्दों पर विचार करना चाहिये। हिंदी-शब्दों में इकार के बाद स्वत यकार का उच्चारण होता है, जैसा किया, दिया, आदि से स्पष्ट है। इसके सिवा "हानि" शब्द इकारांत है। इसका बहुवचन में "हानिओं" न होकर "हानियो" रूप होता है। × × × × सच तो यो है कि हिंदी की प्रकृति इकार के बाद यकार उच्चारण करने की है। इसलिए "चाहिये", "लिये", "दीजिये", "कीजिये" जैसे शब्दों के अंत में प्रकार न लिखकर "येकार" ही लिखना चाहिये।"

३८७–संयुक्त कालों की रचना में "होना" सहकारी क्रिया के रूपों का काम पड़ता है, इसलिये ये रूप आगे लिखे जाते हैं। हिंदी में "होना" क्रिया के दे अर्थ हैं—(१) स्थिति (२) विकार। पहले अर्थ में इस क्रिया के केवल दो काल होते हैं। दूसरे अर्थ में इसकी काल-रचना और क्रियाओं के समान होती है, पर इसके कुछ कालों से पहला अर्थ भी सूचित होता है।

होना (स्थितिदर्शक)

(१) सामान्य वर्तमानकाल

कर्त्ता—पुल्लिग वा स्त्रीलिंग

एकवचन बहुवचन
उ०पु० मैं हूँ हम हैं