[सू॰—(१) इन उदाहरणों से जाने पड़ेगा कि हिंदी में कालों की
संख्या कम से कम सेलह है। भिन्न-भिन्न हिंदी व्याकरणों में यह संख्या
भिन्न भिन्न पाई जाती है जिसका कारण यह है कि कोई कोई वैयाकरण कुछ कालों को स्वीकृत नहीं करते अथवा उन्हें भ्रम-वश छेड़ जाते हैं। अपूर्ण वर्त्तमान, अपूर्ण भविष्यत् और पूर्ण भविष्यत् काले के छेड़, जिनकी विवेचन संयुक्त क्रियाओं के साथ करना ठीक जान पड़ता है, शेष काल हमारे किये हुए वर्गीकरण में ऐसे हैं जिनका प्रयोग भाषा में पाया जाता है और जिनमें काल तथा अर्थ के लक्षण घटते है। कालों के प्रचलित नामों में हमने दो नाम बदल दिये हैं—(१) आसन्नभूत (२) हेतुहेतुमद्भूत। "आसन्नभूत" नाम बदलने की कारण पहले कहा जा चुका है, तथापि काल-रचना में इसी नाम का उपयोग
ठीक जान पड़ता है। 'हेतुहेतुमद्भूत' नाम बदलने का कारण यह है कि इस काल के तीन रूप होते हैं जिनमें से प्रत्येक का प्रयोग अलग अलग प्रकार का है और जिनका अर्थ एक ही नाम से सूचित नहीं होता। ये काल केवल संकेतार्थ में आते हैं, इसलिए इनके नाम के साथ "संकेत" शब्द रखना उसी प्रकार आवश्यक है जिस प्रकार "संभाव्य" और "सदिग्ध" शब्द संभावनर्थ और संदेहार्थं सूचित करने के लिए आवश्यक होते है।
जो काल और नाम प्रचलित व्याकरणों में नहीं पाये जाते वे उदाहरण सहित यहाँ लिखे जाते है—
प्रचलित नाम | नया नाम | उदाहरण |
आसन्न भूतकाल | पूर्ण वर्त्तमानकाल | वह चला है |
× | संभाव्य वर्तमानकाल | वह चला हो |
× | संभाव्य भूतकाल | वह चला हो |
विधि | प्रत्यक्ष विधि | तू चल |
हेतुहेतुमद्भूतकाल | सामान्य संकेतार्थ | वह चलता |
× | अपूर्ण संकेतार्थ | वह चलता होता |
× | पूर्ण संकेतार्थ | वह चला होता |
(२) कालों के विशेष अर्थ वाक्य-विन्यास में लिखे जायँगे।]
(४) पुरुष, लिंग और वचन
प्रयोग।
३६२—हिंदी क्रियाओं में तीन पुरुष (उत्तम, मध्यम और अन्य),