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नहीं है। वहाॅ केवल इनके कुछ प्रचलित उदाहरण दिये जाते हैं—

वसिष्ठ = वसुमत् (धनी) + इष्ठ।
स्वादिष्ठ = स्वादु (मीठा) + इष्ठ।
बलिष्ठ = बलिन् + इष्ठ।
गरिष्ठ = गुरु+ इष्ठ।

(इ) नीचे लिखे रूप विशेषण के मूल रूप से भिन्न हैं—

कनिष्ठ—यह 'युवन्' शब्द का एक रूप है।

ज्येष्ठ, श्रेष्ठ—इनके मूल शब्दों का पता नहीं है। हिंदी में "श्रेष्ठ" शब्द बहुधा उत्तरावस्था में आता है, जैसे, "धन से विद्या श्रेष्ठ है।" (भाषा॰)।

[सू॰—हिंदी में ईयस् प्रत्ययात सदाहरण बहुधा नहीं मिलते। "हरेरिच्छा बलीयसी" और "स्वर्गादपि गरीयसी" में संस्कृत के स्त्रीलिंग उदाहरण है ।]

३४६ (क)-हिंदी में कुछ उर्दू विशेषण अपनी उतरावस्था और उत्तमावस्था में आते हैं; जैसे, बिहत्तर (अधिक अच्छा), बदतर (अधिक बुरा), ज्यादातर (अधिकतर), पेशतर (अधिक पहले—क्रि॰ वि॰), कमतरीन (नीचतम)।


छठा अध्याय।

क्रिया।

३४७—क्रिया का उपयोग विधान करने में होता है और विधान करने में काल, रीति, पुरुष, लिंग और वचन की अवस्था का उल्लेख करना आवश्यक होता है।

[सू॰—संस्कृत में ये सब अवस्थाएँ क्रिया ही के रूपातर से सूचित होती हैं; पर हिंदी में इनके लिये बहुधा सहकारी क्रियाओं को काम पड़ता है।]