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"जो खुशी बड़े बड़े राजाओं को होती है वही एक गरीब से गरीब लकड़हारे के भी होती है।" (परी॰)।

(ऋ) कभी कभी सर्वोत्तमता केवल ध्वनि से सूचित होती है और शब्दों से केवल यही जाना जाता है कि अमुक वस्तु में अमुक गुण की अतिशयता है। इसके लिए अत्यंत, परम, अतिशय, बहुतही, एकही, आदि शब्द का प्रयोग किया जाता है, जैसे, अत्यंत सुंदर छबि," "परम मनोहर रूप"। "बहुतही डरावनी मूर्ति।" "पंडितजी अपनी विद्या में एकही हैं।" (परी॰)।
(ए) कुछ रंगवाचक विशेषणों से अतिशयता सूचित कराने के लिये उनके साथ प्राय उसी अर्थ का दूसरा विशेषण वा संज्ञा लगाते हैं; जैसे, काला-भुजंग, लाल-अंगारा, पीला-जर्द।
(ऐ) कई वस्तुओं की एकत्र उत्तमता जताने के लिए "एक" विशेषण की द्विरुक्ति करके पहले शब्द को अपादान कारक मेँ रखते हैं और द्विरुक्त विशेषणो के पश्चात् गुणवाचक विशेषण लाते हैं, जैसे, "शहर में एकसे एक धनवान लोग पड़े हैं। "बाग में एकसे एक सुंदर फूल हैं।"

३४५—संस्कृत गुणवाचक विशेषणों में तुलना द्योतक प्रत्यय लगाये जाते हैं। तुलना के विचार से विशेषणों की तीन अवस्थाएँ होती हैँ—(१) मूलावस्था (२) उत्तरावस्था (३) उत्तमावस्था।

(१) विशेषण के जिस रूप से किसी वस्तु की तुलना सूचित नहीं होती उसे मूलावस्था कहते हैं, जैसे, "सोना पीला होता है," "उच्च स्थान," "नम्र स्वभाव," इत्यादि।

(२) विशेषण के जिस रूप से दो वस्तुओं में किसी एक के गुण की अधिकता वा न्यूनता सूचित होती है उस रूप को उत्तरा-